Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१८४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ गयुं. वस्त्रमां ममत्व-मारापणुं रह्युं नहि. एम आ आत्मा अने राग जे अपरभाव एटले परभाव छे-ए बन्नेनां लक्षणो जुदां छे अर्थात् आत्मा ज्ञान लक्षणथी लक्षित छे अने राग बंध लक्षणथी लक्षित छे एटली वात ज्यां सांभळी त्यां कहे छे के शिष्यने ए वात ख्यालमां आवी गई के आत्मा तो रागरहित छे अने ज्यां रागमां जोडायो नहि अने अंदरमां गयो त्यां अन्यदीयैः सकलभावैः विमुक्ता अन्य सकळ भावोथी रहित स्वयम् इयम् अनुभूतिः पोते ज आ अनुभूति झटिति आविर्बभूव तत्काळ प्रगट थई गई. सिद्धांत समजवा द्रष्टांत वेगथी प्रवृत्तिने पामे नहि एटले के उपयोग द्रष्टांतने समजवामां जोडाय ते पहेलां ज तत्काळ सकल परभावोथी रहित पोते ज अनुभूति प्रगट थई गई. अर्थात् बीजी रीते कहीए तो, “आ परभावना त्यागनां द्रष्टांतनी द्रष्टि जूनी न थाय ए रीते एटले के समयांतर आंतरो पडया विना, अत्यंत वेगथी आ अनुभूति तो प्रगट थई गई. प्रथम मिथ्यात्वनो व्यय थयो अने पछी सम्यग्दर्शननी उत्पत्ति थई एम नथी, पण स्वभाव तरफ वळ्‌यो त्यां तो अन्यभावोथी रहित अनुभूति थई गई. जेम कोई माणस आवे ते ज वखते काम पुरुं थाय. त्यां एम कहेवाय के, ‘तमे न आव्या त्यार पहेलां तो आ काम थई गयुं.’ खरेखर तो आव्यो छे ने काम थयुं छे. बन्ने साथे छे. पहेलां पछी नथी. तेम अहीं पण पहेलां-पछी नथी. पण पहेलां पछीनी वात करी समजावेल छे. पण परभावनां त्यागनी द्रष्टि पहेलां परभावथी रहित अनुभूति थई एम नथी. परभावोनां त्यागनी द्रष्टि एटले ज्ञायकस्वभावनी ज्यां द्रष्टि थई त्यां ज परभावरहित आत्मानी अनुभूति थई गई छे. बन्ने साथे ज छे, काळभेद नथी. द्रष्टांतमां पहेलां पछी कहेवाय. पण त्यां ते प्रमाणे काळभेद न समजवो.”

दया, दान, व्रत, भक्ति आदि लाख क्रियाओ करे पण ए बधो विकल्प छे, ए बंधनुं लक्षण छे. भगवान आत्मा ज्ञानलक्षणथी लक्षित छे. रागनो विकल्प आकुळतामय छे अने बंधनुं लक्षण छे. निराकुळ ज्ञानस्वभावी आत्मानो ए भाव नथी आटलुं सांभळतां आ राग परभाव छे एवो पर (राग) तरफनो विकल्प ऊठे ते पहेलां ज्ञान ज्ञानमां स्थिर थई गयुं अने निर्विकल्प अनुभूति प्रगट थई गई. हुं अनाकुळ चिद्घन ज्ञानानंदस्वरूप छुं एवुं ज्यां द्रष्टिमां जोर आव्युं त्यां तत्काळ अनुभूति प्रगट थई गई, भगवान आत्माना आनंदनो प्रत्यक्ष स्वाद आव्यो.

आचार्य भगवान, पारका वस्त्रनी जेम आ रागादि परभाव छे एटलुं ज्यां समजावे त्यां आत्मानो निर्णय थई गयो. अन्यभावोथी रहित साक्षात् अनुभूति पोते ज प्रगट थई गई; द्रष्टांत समजवानी पण पछी एने जरूर न रही.

लोको कहे छे के व्यवहारथी लाभ थाय एम कहो, केम के भगवान जिनेन्द्रदेवे बे नयथी वस्तुनी प्ररूपणा करी छे. बे नयोना आश्रये सर्वस्व कहेवानी तेमनी पद्धति छे.