Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३प ] [ १८प नियमसारमां आवे छे के-हुं ते वाणीने वंदुं छुं के जे बे नयोथी वस्तुने कहे छे. (बे नयोने ग्रहण करवानुं कहे छे.)

बे नयो छे, बे नयोना बे विषयो पण छे अने शास्त्रोमां कथन पण बे नयथी आवे छे. परंतु तेमांथी एक नय (आश्रयनी अपेक्षा) हेय छे अने एक नय (आश्रयनी अपेक्षा) उपादेय छे. बन्ने नय परस्पर विरुद्ध छे. द्रव्यनयथी पर्यायनय अने पर्यायनयथी द्रव्यनय विरुद्ध छे. निश्चयनयथी व्यवहारनय अने व्यवहारनयथी निश्चयनय परस्पर विरुद्ध छे. बेमांथी निश्चयनय एक आश्रय करवा योग्य छे, ज्यारे व्यवहारनय हेयपणे जाणवा लायक छे. आ रीते बे नय परस्पर विरुद्ध छे छतां व्यवहारथी निश्चय माने तो बे नय कयां मान्या? भाई! वादविवादथी पार आवे एवुं नथी. वस्तुस्वरूप ज आवुं छे.

अहीं कहे छे के व्यवहारनयनो विषय राग छे-पर्याय छे अने अभेद निर्विकल्प ध्रुव वस्तु छे ते निश्चयनयनो विषय छे. एम बे नयोना बे विषयो छे एवा विचारमां विकल्पनी प्रवृत्तिमां जोडायो नहि त्यां तो आ बाजु निश्चयस्वरूपमां ढळतां ज आत्मानो साक्षात्कार थई गयो.

बीजी वात कळशटीकामां आवे छे के-जे काळे जीवना मोहरागद्वेषरूप अशुद्ध परिणमनरूप संस्कार छूटी जाय छे ते ज काळे तेने अनुभव छे. शुद्ध चेतनामात्रनो आस्वाद आव्या विना अशुद्ध भावरूप परिणाम छूटता नथी अने अशुद्ध संस्कार छूटया विना शुद्ध स्वरूपनो अनुभव थतो नथी. एटले के अशुद्धता छूटे अने पछी शुद्धता थाय के शुद्धता थाय अने पछी अशुद्धता छूटे एम नथी. जे कांई छे ते एक ज काळ, एक ज वस्तु, एक ज ज्ञान अने एक ज स्वाद छे.

अहाहा! आ अशुद्धपणुं छे अने आ वस्तु त्रिकाळ शुद्ध छे एवो जे विकल्प ते ऊठे नहि त्यां तो आ बाजु अंदर शुद्धमां ढळी जाय छे अने शुद्ध आनंदनो अनुभव थाय छे; ए ज काळे अशुद्ध परिणामनो व्यय थाय छे. अशुद्ध परिणामनो व्यय अने शुद्ध आनंदनो अनुभव एक ज काळे-समकाळे छे. आ तो ठेठ मूळनी वात छे. आत्मा आनंदना स्वादने तत्काळ पाम्यो एटले के आ राग पर छे अने आ (आत्मा) स्व छे एवी प्रवृत्ति थवा पहेलां तत्काळ आनंदना स्वादने पाम्यो. अहाहा! रागथी-विकल्पथी खसीने अंदर ढळी जवुं ए ज सत्य पुरुषार्थ छे.

(एक प्रकार एवो पण होय छे के) पर्याय तरफना विकल्प आदि होय छे. बेना भेदनो विकल्प पण ऊठे छे. कळशटीकामां आ पण कह्युं छे के आवुं प्रथम विकल्परूप भेदज्ञान आवे छे. ‘राग जुदो अने हुं जुदो’ ए विकल्प त्यां होय छे. पण अहीं तो