१८६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ कहे छे के-‘आ हुं नहीं अने आ हुं’ एवो विकल्प ऊठे ते पहेलां तो अंतरमां ढळी गयो अने अनुभूति प्रगट करी लीधी. वस्तु तो वस्तु छे, पण वस्तुनो आश्रय लई अनुभूति प्रगट करी लीधी. राग पर छे माटे भिन्न छे एवुं लक्ष पण न रह्युं अने अनुभूति प्रगट थई एने प्रत्याख्यान कहे छे. अहीं तो प्रत्याख्याननुं स्वरूप समजाववुं छे ने? वात शरूथी अनुभूतिथी उपाडी छे. ज्यारे ज्यारे आचार्योए प्रत्याख्यान के चारित्रनी वात करी छे त्यारे पहेलेथी अनुभूतिथी ज वात करी छे. समयसारमां पाछळ ४९ भंग आवे छे तेमां पण अनुभवथी ज उपाडयुं छे.
विकल्पथी-रागथी कयारे शून्य थवाय? के ज्यारे अस्ति महाप्रभु छे तेना उपर द्रष्टि पडे त्यारे. निर्विकल्पस्वरूप अस्तित्व उपर द्रष्टि पडवाथी विकल्पथी शून्य थवाय छे. पोतानुं अस्तित्व केटलुं, केवुं ए वातनी खबर न होय तो विकल्पथी शून्य केम थवाय? उपरना पगथिया उपर पग मूके तो नीचेना पगथिया उपरथी पग उपाडी शकाय. पण जो उपर पग मूकया विना नीचेनो पग उपाडे तो नीचे पडे. तेम भगवान आत्मा जे महाअस्तिरूप छे तेनी उपर द्रष्टि पडतां ‘आ राग नथी’ तेवा नास्तिना पण विकल्पनी जरूर नथी (त्यारे पोते विकल्पथी शून्य-विकल्परहित थई जाय छे), केमके स्वयं निर्विकल्प अनुभूति प्रगट थई जाय छे.
वस्तु आवी छे, भाई! गाथा ३८ मां आवे छे के-पोताना परमेश्वरने, मूठीमां राखेलुं सुवर्ण कोई भूली गयो होय ते फरीने याद करीने सुवर्णने देखे ए न्याये तेने जाणीने, तेनुं श्रद्धान करीने तथा तेनुं आचरण करीने ते सम्यक् प्रकारे एक आत्माराम थयो. राग परनो छे ए लक्ष त्यां रहेतुं नथी. बेपणुं ज्यां न थाय त्यां एकपणामां आवी गयो छे. अहाहा! आ शुभभाव छे ए मारामां नथी एवा विकल्पने पण त्यां अवकाश नथी. प्रभु! तारी परमेश्वरता एटली मोटी छे के एना अनुभव माटे परनुं लक्ष करीने अनुभव थाय एवो तुं नथी. आ राग भिन्न छे एवुं लक्ष करीने भिन्न पडे एवुं नथी एम कहे छे.
‘स्वयम् इयम्’ एम शब्द पडयो छे ने? एटले के आ अनुभूति परना त्यागनी अपेक्षा विना पोते ज प्रगट थई गई. तेने परना त्यागनी अपेक्षा नथी. गाथा ३४ मां ए वात आवी गई छे के पोताने रागना त्यागनुं र्क्तापणुं ए नाममात्र कथन छे, परमार्थ नथी. रागना करवापणानी वात तो दूर रही, रागनो नाशनो र्क्ता पण नाममात्र छे, व्यवहारमात्र छे, वस्तुमां नथी. अहो! वस्तुने रजु करनारी आचार्यनी कोई गजब शैली छे!
आ परभावना त्यागनुं जे द्रष्टांत कह्युं एना पर द्रष्टि पडे ते पहेलां समस्त अन्यभावोथी रहित पोताना स्वरूपनुं अनुभवन तत्काळ थई गयुं. भगवान आत्मा पूर्णानंदनो नाथ