Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३प ] [ १८७ छे. एना तरफनो ज्यां झुकाव थयो त्यां तो तरत ज अनुभूति प्रगट थई गई. आनुं नाम पच्चकखाण छे.

भाई! जिनेन्द्रनो मार्ग अलौकिक छे. एनी प्राप्ति स्वभावथी थाय छे. एटले के ते स्वभावथी जणाय तेवो छे.

प्रश्नः– व्रत, दया, दान आदि शुभराग तेनुं साधन खरुं के नहि?

उत्तरः– ना. रागथी भिन्न पडी अंदरमां प्रज्ञाछीणी मारवी ए ज एनुं साधन छे. प्रज्ञा वडे अंदरमां जवुं ए तेनुं साधन छे. राग आदि कोई अन्य साधन नथी. ए ज वात अहीं कही छे के स्वयम् इयम् अनुभूतिः आविर्बभूव आत्मामां, करण कहो के साधन कहो-ए नामनी शक्ति त्रिकाळ रहेली छे. गुणी एवा आत्मानो आश्रय करतां ए पोते ज (निर्मळ) पर्यायनुं साधन थई जाय छे.

संसारमां पण कहे छे ने के तमे आव्या ते पहेलां ज आ काम थई गयुं. एम अहीं कहे छे के-भगवान आत्माने परभावना त्यागनुं जे द्रष्टांत ते पर द्रष्टि पडे ते पहेलां ज एटले के द्रष्टांत पर लक्ष जाय ते पहेलां ज अंदरमां उतरी गयो. ज्यां जवुं हतुं त्यां जोर वधी गयुं. एमां परना-रागना त्यागनी पण अपेक्षा रही नहि. आ ज्यां जवुं हतुं त्यां जोर वधी गयुं. एमां परना-रागना त्यागनी पण अपेक्षा रही नहि. आ राग पर छे एम समजवा माटे त्यां द्रष्टांतनुं पण काम रह्युं नहि. झटिति एम कह्युं छे ने? परभावना जे द्रष्टांत कह्युं ए उपर द्रष्टि पडे ते पहेलां समस्त अन्यभावोथी रहित पोताना स्वरूपनुं तत्काळ अनुभवन थई गयुं. कारण के ए प्रसिद्ध छे के वस्तुने परनी जाण्या पछी तेमां लक्ष रहेतुं नथी. जे चीज पर जाणी एना पर ममत्व नहि रहेवाथी एनुं लक्ष रहेतुं नथी. भाई! वस्तु आवी छे. आ सिवाय बीजी कोई रीते सोंघुं करवा जशे तो मोघुं (दुष्प्राप्य) पडशे. दुनिया व्रत, नियम, दया, दान, उपवासादि क्रियाकांड वडे धर्म माने छे, मनावे छे. पण एम सोंघुं करवा जईश तो छेतराई जईश. जिंदगी चाली जशे. (परिभ्रमण ऊभुं रहेशे).

[प्रवचन नं. ७९, ८०, ८१. * दिनांक १७-२-७६ थी १९-२-७६]