Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१९० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ सोळ पदनां जुदां जुदां सोळ गाथासूत्रो व्याख्यानरूप करवां अने आ उपदेशथी बीजां पण विचारवां.

हवे शिष्य आशंका करीने पूछे छे-आशंका एटले आपनी वात यथार्थ नथी एम शंकाशील थईने नहि पण आप शुं कहो छो ए पोतानी समजमां बेठुं नथी तेथी समजवा माटेना प्रश्नने आशंका कहे छे. एम आशंका करीने पूछे छे के-आ अनुभूतिथी परभावनुं भेदज्ञान केवा प्रकारे थयुं? तेवी आशंकाना उत्तररूपे प्रथम, जे भावकभाव- मोहकर्मना उद्रयरूप भाव, तेना भेद्रज्ञाननो प्रकार कहे छे.

* गाथा ३६ः टीका उपरनुं प्रवचन *

निश्चयथी एटले खरेखर फळ देवाना सामर्थ्यथी प्रगट थईने भावकरूप थतो जे कर्मनो उदय, तेना वडे रचायेलो जे भाव्यरूप मोह ते मारो कांई पण लागतो-वळगतो नथी. कर्मना निमित्तथी रचाता मोहभावने अने मारे कांई पण संबंध नथी, केम के हुं ज्ञायकभाव छुं अने रागभाव वडे मारुं थवुं ए अशकय छे. मारामां मोह छे ज नहि. हुं तो निर्मोही भगवान आत्मा छुं. १४ प्रकारना अभ्यंतर परिग्रह-मिथ्यात्व, ४ कषाय अने ९ नोकषाय तथा १० प्रकारना बाह्य परिग्रह-क्षेत्र, वास्तु, सोनुं, चांदी, धन, धान्य, दास, दासी, वस्त्र अने वासण-ए सर्व मारामां छे ज नहि. तेम ज बाह्य परिग्रह प्रत्येनो राग पण मारामां नथी. परिग्रह प्रत्येनी वृत्ति ऊठे छे ते मारा स्वरूपमां छे ज नहि. जेने अभ्यंतर परिग्रहनो त्याग छे तेने बाह्य परिग्रहनो त्याग असद्भूत व्यवहारनये कहेवाय छे. जुओ, वस्त्र अने वासण ए बाह्य परिग्रहमां कह्यां छे. एटले वस्त्र अने पात्र सर्व परिग्रहत्यागी निर्ग्रंथ मुनिने होय ज नहि.

अहीं कहे छे के पुद्गलद्रव्य भावकरूपे थईने मोहने रचे छे. अहीं जे मोहनी वात छे ते चारित्रमोहनी वात छे. समक्ति पछीनी वात छे, मिथ्यात्वनी वात नथी. पर तरफना वलणवाळो जे भाव-रागद्वेष छे ते मोह छे. ते मोह मारो कांई पण संबंधी नथी. पर तरफनी सावधानीनो जे भाव छे ते मारो नथी. मारा स्वभाव तरफनी सावधानीनो जे भाव छे ते मारो छे. ज्ञानानंद सहजानंद प्रभु आत्माने अने पर तरफना सावधानीना भावने कांई लागतुं-वळगतुं नथी. भावक मोहकर्म अने तेनी तरफना वलणवाळो जे भाव छे तेनी साथे मारे कांई पण संबंध नथी, कारण के एक चैतन्यधातु ज्ञायकस्वभावभावनुं परमार्थे परना भाव वडे थवुं-भाव्यरूप थवुं अशकय छे.

धर्मी जीव आगळ वधीने पच्चकखाण करे छे एनी आ वात छे. जड मोहकर्म ते भावक छे अने आत्मानो उपयोग जे पर तरफना वलणवाळो थईने रागद्वेषभावयुक्त परिणमे छे ए तेनुं भाव्य छे. पुद्गलद्रव्य, फळ देवाना सामर्थ्यथी प्रगट थईने भावकरूपे थाय छे त्यारे तेना निमित्ते पर तरफनो विकारीभाव-मोह रचाय छे. अहीं कहे छे के आ मोह मारो कांईपण संबंधी नथी कारण के हुं तो ज्ञानदर्शनशक्तिनी व्यक्तता रूप