Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३६ ] [ १९१

ज्ञानदर्शनउपयोगस्वरूप छुं. जेम कर्म भावकरूपे थाय छे तो मोह रचाय छे तेम हुं ज्ञानदर्शनउपयोगस्वभावी तत्त्व छुं, जेथी मारी पर्यायमां ज्ञानदर्शनशक्तिनी व्यक्तता थाय; ए व्यक्ततारूप उपयोग ते मारी चीज छे परंतु मोह ए मारी चीज नथी. कर्मना निमित्ते थता रागद्वेषना परिणाम जे उपयोगमां झळके छे ते हुं नथी, कारण के टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकस्वभावभाव शुद्धचैतन्यउपयोगस्वभावी वस्तुनुं विकाररूप भाव्यपणे थवुं अशकय छे.

हुं तो चैतन्यशक्तिस्वभाववाळुं तत्त्व छुं. तेथी मारो जे विकास थाय ए पण जाणवा-देखवाना परिणामरूपे ज थाय छे. भावककर्मना निमित्ते जे विकार थाय ए मारो विकास नहि. पर्यायमां पण विकार न थाय एवुं मारुं स्वरूप छे. शक्तिरूपे तो आत्मा ज्ञायक छे ज. परंतु तेथी व्यक्तता अने प्रगटता थाय ते पण ज्ञानदर्शनउपयोगस्वरूपे ज थाय. राग-द्वेषना विकाररूपे थवुं एवी शक्ति तो नथी पण तेवी पर्यायनी व्यक्तता- प्रगटता थाय ए पण नथी. अहाहा! जीव अधिकारनी छेल्ली गाथाओ छे ने? तेथी जीवथी अजीवने तद्न जुदो पाडे छे. चैतन्यशक्तिनी प्रगटतानुं विकाररूप थवुं अशकय छे.

भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्य उपयोगस्वरूप छे, अने तेनी व्यक्तता-प्रगटता जाणवा-देखवारूपे ज होय छे. एनी शक्तिमांथी विकारना परिणाम प्रगटे ए अशकय छे. आवो भगवान आत्मा जेनी निरंतर शाश्वती संपदा छे ते, चैतन्यशक्तिमात्र स्वभावभाव वडे अर्थात् जाणवा-देखवाना स्वभावभाव वडे जाणे छे के-हुं एक छुं. जाणवा-देखवाना स्वभावे हुं एक छुं. जुओ, आमां प्रभुत्वशक्ति लीधी छे. आत्मामां एक प्रभुत्वशक्ति छे जे वडे ते अखंड प्रताप वडे स्वतंत्रपणे शोभायमान छे. आवा आत्मानी विश्वने प्रकाशवामां चतुर, विकासरूप, निरंतर शाश्वती संपदा छे. आ बाह्य मकान-कुटुंब आदि संपदा आत्मानी नथी, ए तो जड छे. अहीं कहे छे के भगवान आत्मा चैतन्यशक्तिना स्वभाव-सामार्थ्य वडे एम जाणे छे के परमार्थे हुं एक छुं. राग अने हुं एम बे थईने एक छुं एम नहि, पण रागथी भिन्न हुं तो चैतन्यशक्तिमात्र एक छुं.

तेथी जो के मारो चैतन्यस्वभाव अने जगतनां बीजां द्रव्यो एक क्षेत्रे रहे छे तोपण भिन्नभिन्न छे. परस्पर साधारण अवगाहनुं निवारण करवुं अशकय होवाथी एक ज क्षेत्रे होवा छतां आत्मा अने जड, शिखंडनी जेम, भिन्न छे. शिखंडमां जेम खटाश अने मीठाश एक क्षेत्रमां रहेली छे छतां खटाश अने मीठाशनो स्वाद तद्न भिन्न छे तेम आत्मा अने जड एकमेक (जेवा) थई रह्या छे तोपण स्पष्ट अनुभवमां आवता स्वादभेदने लीधे भिन्न छे. भगवान आत्मानो स्वाद अनाकुळ आनंदरूप अने कर्मना फळनो-रागनो स्वाद दुःखरूप छे. एम बन्ने भिन्नभिन्न छे.

भगवान आत्मा अनाकुळ आनंदना स्वभावथी भरेलो प्रभु छे. तेनी अनाकुळ आनंदना वेदनवाळी जे पर्याय प्रगट थाय छे तेनो स्वाद रागना स्वादथी तद्न जुदो छे.