१९२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ कोई लोको एम माने छे के साकरनो अने अफीणनो स्वाद आवे छे. परंतु ए तो जड चीज छे. तेनो स्वाद कोईने आवतो नथी. परंतु ते तरफनुं लक्ष करीने आ ठीक अने आ अठीक एम जे रागद्वेष करे छे ए रागद्वेषनो स्वाद आवे छे, तेनुं वेदन थाय छे. अहीं कहे छे के ए स्वाद पण, ज्ञानस्वभावी अनाकुळ आनंदना स्वभावनो सागर प्रभु आत्मा छे तेनी व्यक्त दशाना स्वादथी भिन्न छे. आत्मा अने जड, शिखंडनी जेम एकमेक थई रह्या छे तोपण स्वादभेदने लीधे भिन्न छे. जेम शिखंडमां मीठो अने खाटो स्वाद भिन्नभिन्न छे तेम जड अने आत्मानो स्वाद अनुभवमां स्पष्ट भिन्न जणाय छे. ज्ञानीनी वस्तुना स्वभाव उपर द्रष्टि होवाथी, वस्तुशक्तिनी व्यक्तता जे आनंद प्रगटे छे ते स्वादमां जणाय छे. तेथी कहे छे के-आम स्वाद भेदने लीधे हुं मोह प्रति निर्मम छुं.
अहीं मोहनी वात करी छे तेमां पर तरफना रागादि बधाय भावो आवी जाय छे. तेनो स्वाद कलुषित छे, ज्यारे भगवान आत्मानो स्वाद आनंद छे, जे कलुषितताथी भिन्न छे. तेथी मोह प्रत्ये हुं निर्मम ज छुं. कारण के सदाय पोताना एकपणामां प्राप्त होवाथी हुं तो एकरूप ज्ञायक छुं. ज्ञायकपणाना लीधे ज्ञानपणाना परिणमन सहित एवो ने एवो सदाय स्थित छुं. अहाहा! कर्मना निमित्तथी-भावकथी जे रागादि भाव्य थाय छे तेनो स्वाद अने ज्ञायकस्वभावनी परिणतिमां जे आनंद आवे छे तेनो स्वाद भिन्न छे एम भेदज्ञान थवाथी हुं तो एकरूप-ज्ञायकरूपे ज छुं. आ बीजो स्वाद छे ए बीजानो छे, मारो नथी एम जणाय छे.
दहीं अने खांड मेळववाथी शिखंड थाय छे. एमां दहीं अने खांड एकमेक जेवां मालुम पडे छे तोपण प्रगट खाटा-मीठा स्वादना भेदथी बन्ने जुदां जुदां जणाय छे. तेवी रीते द्रव्यकर्मना उदयनो स्वाद जे रागादि छे ते, भगवान ज्ञायकस्वभावनी जे परिणति प्रगट थाय छे तेनाथी स्वादभेदने लीधे भिन्न छे. द्रव्यकर्म जे जड छे ते भावक छे अने तेना तरफनो भाव्यरूप जे राग छे तेना स्वादनी जात आत्माथी भिन्न छे. रागनो स्वाद कलुषित आकुळतामय छे अने भगवान आत्मानो स्वाद अनाकुळ आनंद छे. आम स्वादभेदथी-लक्षणभेदथी भेदज्ञान करवुं ए धर्मधारा छे, धर्म छे. कर्मना संबंधे जेटली अस्थिरता-व्याकुळता थाय छे ते मारी चीज नथी, केम के हुं तो ज्ञायकस्वभावी चैतन्यमात्र छुं. मोह-रागादि अने ज्ञायकभाव एम बेपणे हुं नथी. हुं तो एक ज्ञायकमात्र ज छुं, एकरूप ज छुं एम जे आत्माना उपयोगथी जाणे छे तेने समयना जाणनाराओ मोहनिर्मम कहे छे. अंतःस्वभावनी सावधानीना उपयोगमां रागनो स्वाद आवतो नथी तेथी तेना प्रत्ये निर्ममत्व थाय छे, ते ज्ञानी रागमां जोडातो नथी. अहीं परिपूर्ण स्थिरता थई तद्न जुदो पडी पूर्ण वीतराग न थाय त्यांसुधीनी वात लीधी छे.
चैतन्यदळ जे वस्तु आखी छे, जे जीवतर शक्ति, चैतन्यशक्ति, सुखशक्ति,