Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१९४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२

आत्मानी ज्ञान-दर्शन शक्तिनी व्यक्तता जाणवा-देखवानी थाय छे. आत्मानुं व्यक्तित्व जे जाणवा-देखवानी व्यक्त दशा थाय ते छे. परंतु रागनुं परिणमन थाय एवुं तेनुं स्वरूप नथी. रागनी रचना करे एवो कोई गुण के शक्ति चैतन्यस्वरूप आत्मामां नथी. चैतन्यद्रव्य छे, तेनी चैतन्यशक्ति छे अने तेनी पर्याय-व्यक्ति जाणवा-देखवानी थाय छे. भाई! वीतरागमार्ग जगतथी जुदो छे. लोकोए तेने क्रियाकांडमां मनावी दीधो छे. अहीं कहे छे के व्रतादिनो जे विकल्प छे ते अचेतन छे, जड छे. ए कांई चैतन्यशक्तिनी व्यक्तता-प्रगटता नथी. अहाहा! वस्तु आखुं चैतन्यदळ छे अने चैतन्यपणुं ए तेनी शक्ति-गुण छे. तो तेनी व्यक्तता चैतन्यना एटले ज्ञान-दर्शनना उपयोगमय ज होय ने? तेनी प्रगटतामां रागद्वेष केवी रीते होय?

भेदज्ञान थतां जे रागद्वेषमोहरूप कलुषता अथवा मलिनतानो भाव छे ते द्रव्यकर्मरूप जड पुद्गलद्रव्यनी व्यक्तता छे एम जणाय छे. निश्चयथी राग पुद्गलनो छे; केमके विकार-राग ए कोई चैतन्यशक्तिनी व्यक्तता नथी. व्यवहाररत्नत्रयनो विकल्प पण निश्चयथी ज्ञानस्वभावनी जाणकशक्तिना सामर्थ्यमांथी आवेलो नथी. तेथी ते जड छे. जाणकशक्तिना सामर्थ्यमांथी तो मात्र जाणवा-देखवाना परिणाम थाय छे. ते परिणाम रागादिने जाणे छे परंतु ते रागादि मारा छे एम जाणे नहि.

भावक एटले कर्मनो उदय अने ते भावकथी थयेला राग-द्वेष ते भावकना भाव छे. परंतु राग-द्वेष ज्ञायकना भाव नथी. अहाहा! आ समजवा केटली धीरज जोईए! स्वभावना अवलंबने भेदज्ञान प्रगटे छे त्यारे रागनी कलुषितता उपयोगथी भिन्न, जड पुद्गलद्रव्यनी छे एम भासे छे. अने त्यारे भावकभाव जे द्रव्यकर्मरूप मोहनो भाव छे तेनाथी अवश्य भेदभाव थाय छे. मोहकर्मना निमित्ते जे जे राग थाय छे ते भावकनो भाव छे परंतु ज्ञायकनो नथी. आवुं झीणुं पडे, परंतु भाई! तारामां ए समजवानी ताकात छे. अरे! तारामां तो अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान लेवानी ताकात छे. प्रभु! तारी प्रभुतानी शी वात?

भगवान पूर्णानंदनो नाथ शुद्ध चैतन्यस्वरूपे अचळपणे अंदर बिराजमान छे. ते अनंत अनंत शांति, सुख, ज्ञान अने आनंदनो सागर छे. ते उछळे त्यारे तेमांथी ज्ञान अने आनंदनी परिणति आवे छे. फुवारामां जेम मशीन चालु करतां पाणी आवे छे-ऊडे छे तेम चैतन्यस्वरूप उपर द्रष्टिनुं जोर जतां अर्थात् भगवान आत्मा अनंत शक्तिओथी भरेलुं एक सत्त्व छे एम विश्वास आवतां, जेटलुं अंदर स्वभावमां एकाग्रतानुं दबाण- जोर थाय एटली आनंदनी धारा वहे छे. भेदज्ञान थतां, भावकभाव जे द्रव्यकर्मरूप मोहभाव छे तेनाथी जरूर ज्ञायकभावनो भाव जुदो थाय छे अने आत्मा जरूर पोताना चैतन्यना अनुभवरूप स्थित थाय छे, जेने ज्ञायकभावनो सत्कार थयो छे अर्थात् आ