गाथा ३७ ] [ २०१ गुरु, शास्त्र अने धर्मादि छ द्रव्यो ए बधा परज्ञेयो छे अने ए ज्ञेयोथी मने लाभ छे एवी मान्यता मिथ्यादर्शन छे. ए मिथ्यादर्शनने मटाडनार ज्ञेयभावथी भेदज्ञाननी वात हवे गाथामां कहे छेः-
पोताना निजरसथी जे प्रगट थयो छे-कोण? के ज्ञाननी परिणति. ज्ञानना प्रकाशनी परिणति-दशा पोताना निजरसथी प्रगट थयेल छे. ज्ञाननी परिणति ज्ञेयोने जाणे छे तेथी ज्ञेयोने कारणे थई छे एम नथी. ए तो ज्ञानना स्वरसथी ज प्रगट थयेली छे, पोताना प्रकाशथी ज परिणमेली छे. वळी तेनो निवारण न करी शकाय तेवो फेलाव छे. चैतन्यनी परिणति एवी प्रकाशमय छे के एनो फेलाव निवारी शकाय एम नथी. तथा तेनो समस्त पदार्थोने ग्रसवानो स्वभाव छे. एटले के बधाय ज्ञेयोने-चाहे ते शरीर हो, भगवान हो, मूर्ति हो, देव हो, गुरु हो के शास्त्र हो-ए बधाय ज्ञेयोने पोताना स्वभावथी, ज्ञेयोना कारणे नहि, जाणवानो तेनो स्वभाव छे. ग्रसवानो एटले गळी जवानो, ज्ञानमां जाणी लेवानो. ज्ञाननो स्वभाव समस्त पदार्थोने ग्रसवानो छे छतां ते ज्ञाननुं परिणमन ज्ञेयने लईने थतुं नथी. जेम अरीसामां जे परचीजनुं प्रतिबिंब जणाय छे ते परचीज नथी, तेम ज अरीसामां ए परचीज आवी नथी. वळी अरीसामां परिणति थई छे (प्रतिबिंब पडयुं छे) ते परचीजने कारणे नथी. परंतु अरीसानी स्वच्छताने लईने परचीजनो एमां भास थयो छे. परचीज जाणे अरीसामां आवी होय तेम जणाय छे छतां ते अरीसानी स्वच्छतानी दशा छे, ते कांई परचीज नथी. तथा सामे परचीज छे तेने लईने अरीसानी स्वच्छतानी परिणति थई छे एम पण नथी. तेम आ ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मानो पोतानी दशामां परचीजने जाणवानो-ग्रहवानो-ग्रसवानो-कोळियो करी जवानो स्वभाव छे. समस्त पदार्थोने ग्रसवानो-जाणवानो तेनो स्वभाव छे. चाहे तो सर्वज्ञ परमेश्वर हो, समोसरण हो के मंदिर हो-ए बधायने पोताना चैतन्यना प्रकाशना सामर्थ्यथी तेनो जाणवानो स्वभाव छे.
आवी प्रचंड चिन्मात्रशक्ति वडे ग्रासीभूत करवामां आव्या होवाथी, जाणे अत्यंत अंतर्मग्न थई रह्या होय एवी रीते पदार्थो आत्मामां प्रकाशमान छे. एटले के प्रचंड ज्ञानना सामर्थ्य वडे ज्ञानमां बधा पदार्थो जाणवामां आव्या होवाथी, जाणे ज्ञानमां बधा ज्ञेयो पेसी गया होय अर्थात् ज्ञानमां तद्राकार थई डूबी रह्या होय एवी रीते तेओ आत्मामां प्रकाशमान छे.
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय पदार्थ छे, जगतनी चीज छे. ते केवळी भगवाने जोयेला छे. सर्वज्ञ परमेश्वर सिवाय ते पदार्थो कोईए जोया नथी. धर्मास्तिकाय तेम ज