२०२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ अधर्मास्तिकाय लोकप्रमाण छे. गति करनार (जीव-पुद्गलो) पोताथी गति करे छे त्यारे धर्मास्तिकाय तेमां निमित्त थाय छे. अने ते ते पदार्थ गति करीने पोताथी स्थिर थाय छे त्यारे अधर्मास्तिकाय स्थिर थवामां निमित्त छे. पदार्थो पोताना कारणे गति करे छे अने पोताना कारणे स्थिति करे छे त्यारे बीजी चीजने निमित्त कहे छे. धर्मास्तिकाय गति करावे छे के अधर्मास्तिकाय स्थिति करावे छे एम नथी. तेवी रीते आकाश लोक- अलोकमां व्यापक पदार्थ छे. अने काळद्रव्य जे असंख्य छे ते लोकमां रहेला छे. काळद्रव्य पण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त सत् पदार्थ छे. पुद्गलद्रव्य अनंत छे. कर्म, शरीर, वाणी इत्यादि बधा पुद्गलो परज्ञेय तरीके जगतमां अस्ति धरावे छे. तेम ज अन्य जीवो- निगोदना, सिद्धना जीवो, देव, गुरु, स्त्री, कुटुंब इत्यादि जीवो ते बधा अन्य जीव छे. ज्ञानी कहे छे के आ सर्व परद्रव्यो मारा संबंधी नथी. आ बधांय छये द्रव्यो ज्ञाननुं ज्ञेय छे. एटले के ज्ञान तेमने जाणी ले छे. ज्ञान तेमने जाणी ले छे एम कहेवुं ए पण व्यवहार छे. खरेखर तो ते संबंधी जे पोतानी ज्ञानदशा छे ते-रूपे परिणमतो ते पोताने ज जाणे छे. ज्ञानमां ज्ञेयने जाणवानो स्वभाव छे. परंतु ए ज्ञेय छे माटे तेने जाणवानो स्वभाव छे एम नथी. चैतन्य पोते ज ते काळे, चैतन्यनी शक्तिना विकासना सामर्थ्यथी जे अनंत ज्ञेयो छे तेमने जाणी-जाणवाना भावे परिणमी तेमने गळी जाय छे. परज्ञेय तरीके जगतमां जे अनंत पदार्थो छे तेमने ज्ञान पोताना जाणवाना सामर्थ्यथी जाणे छे. आत्मा पोताना ज्ञानमां रहीने, ज्ञेयना आश्रय-अवलंबन लीधा विना, पोतानो जे स्वपरने प्रकाशवानो स्वभाव छे तेना सामर्थ्यथी ते ज्ञेयोने प्रकाशे छे.
जे परज्ञेयो छे ते जीवना नथी. दीकरो जीवनो नथी के पैसा जीवना नथी. जीवने गुरुय नथी के शिष्य पण नथी. ए तो बधा परज्ञेयो छे. जीवने तो जे ज्ञेयो छे तेमने स्वभावना सामर्थ्यथी जाणे तेवो स्वभाव छे ते पोतानो छे. तेथी धर्मी जीव एम जाणे छे के ते सघळां परद्रव्यो मारां संबंधी नथी. वीतराग अरिहंतदेव अने निर्ग्रंथ गुरु ए मारा संबंधी नथी. ए तो पर पदार्थो छे.
प्रश्नः– देव-गुरुने तो आत्माना राखो. देव-गुरु तो शुद्ध छे ने? ते शुद्ध छे तेथी पोताना मानीए तो?
उत्तरः– अरिहंतदेव अने अनंत सिद्धो पोतपोतामां परम शुद्ध पवित्र परमात्मपदे बिराजमान होवा छतां आ जीवने पोताना माटे तेओ पर छे. तथा आ अरिहंत छे, आ सिद्ध छे, एम मानवा ए विकल्प छे. (अने एमने पोताना मानवा ए मिथ्यात्व छे.) आत्मानो तो पोतानामां रहीने पोताना सामर्थ्यथी ते ज्ञेयोने गळी जवानो स्वभाव छे. तेनो तो ज्ञानना परिणमनमां रमणता करवानो स्वभाव छे. तेथी ए सघळां परद्रव्यो देव, गुरु, शरीर अने कर्म ए मारां संबंधी नथी. जे आठ कर्म छे ते मारां संबंधी नथी. ए तो जड पुद्गल छे अने हुं तो चैतन्य-ज्ञानप्रकाशनी मूर्ति छुं.