Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३७ ] [ २०३

प्रश्नः– कर्म तो जीवने होय छे ने?

उत्तरः– भाई! कर्म तो जीवनां न होय केमके ए तो जड पुद्गलमय छे. जीवने तो ज्ञान पोतानुं होय छे. (जीवने कर्म छे ए तो संयोग बतावनारुं व्यवहारनुं कथन छे.) भगवान! एकवार तारा चैतन्यनुं सामर्थ्य केटलुं छे ए जो तो खरो. तारा ज्ञाननो स्वभाव तो परने, परना आश्रय विना जाणे तेवो छे. परनी हयाती छे माटे परने जाणे छे एम नथी. (परथी निरपेक्ष सहज तारो जाणवानो स्वभाव छे.)

आ धर्मनी वात चाले छे. पर पदार्थोनुं ज्ञान करवानो मारो सहज स्वभाव छे एम जाणवुं एनुं नाम धर्म छे. धर्म एटले शुं? के परपदार्थ अने मारे कांईपण संबंध नथी. परंतु परपदार्थ संबंधी ज्ञान करवानुं मारामां स्वपरप्रकाशक सामर्थ्य छे. ए स्वपरप्रकाशक सामर्थ्यमां स्वनुं परिणमन करवुं ए धर्म छे. सर्व परद्रव्यो मारा संबंधी नथी तेथी ज्ञेयज्ञायक संबंध कहेवो ए पण व्यवहार छे. भगवान! आ लोकालोकनी हयाती छे माटे केवळज्ञानीनी परिणति केवळज्ञानरूप थाय छे एम नथी. परंतु ज्ञाननुं परिणमन पोताना स्वभावना सामर्थ्यथी ज केवळज्ञानरूप थाय छे. ज्ञानना स्वभावनुं सामर्थ्य ज एटलुं छे के ते स्वने जाणे अने परने जाणे. परनी हयाती होवा छतां ज्ञान, परनी हयातीने कारणे नहि, पण पोतानी ज्ञाननी सत्ताना सामर्थ्यने लईने ते स्वपरने जाणे छे.

प्रश्नः– तो शुं भगवानथी पण कांई लाभ न थाय? भगवाननी वाणीथी पण लाभ न थाय?

उत्तरः– ना, केमके भगवान अने भगवाननी वाणी परज्ञेय छे, पर पदार्थ छे- आत्मानो स्वभाव तो पर पदार्थने परपदार्थनी हयातीमां जाणवानो छे. छतां ज्ञान, परनी हयातीना कारणे नहि, पण पोताना स्वपरप्रकाशक ज्ञानना सामर्थ्यनी परिणतिने कारणे जाणे छे. आ समयसारजीनी गाथा ३२० मां त्यांसुधी आवे छे के-भगवान आत्मा ज्ञानस्वरूप छे ते बंधने जाणे, मोक्षने जाणे, उद्रयने जाणे अने निर्जराने जाणे; मात्र जाणे. ल्यो, हवे शुं बाकी रह्युं? पोते ज्ञानस्वभावी प्रभु छे ने? उद्रय पर तरीके ज्ञेय, बंध पर तरीके ज्ञेय, निर्जरा पर तरीके ज्ञेय अने कर्मनुं छूटवुं ते पण पर तरीके ज्ञेय छे. माटे आत्मा उद्रय, बंध, निर्जरा अने मोक्षने जाणे ज छे, करतो नथी. जेम द्रष्टि मात्र परने जाणवानुं काम करे पण परने टकाववानुं, बदलाववानुं परिणमन कराववानुं के परिणमन फेरववानुं काम न करे. तेम भगवान आत्मा लोकनी आंख छे. ए चैतन्यनी द्रष्टिनुं परिणमन तो ज्ञानरूपे छे. पोताना सामर्थ्यथी पोतामां रहीने, परने स्पर्श कर्या विना बधां द्रव्योने ज्ञेय तरीके जाणवानो तेनो स्वभाव छे. तो हवे आमां परनी दया हुं पाळी शकुं ए कयां रह्युं? अहाहा! तत्त्व केटलुं स्पष्ट छे! आवुं बीजे कयांय नथी. आ तो सनातन मार्ग छे.