२०४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२
अनादिथी आत्मानो स्वभाव स्वपरप्रकाशकना सामर्थ्यवाळो छे. तेथी स्वतत्त्व परने प्रकाशे छे ते परनी हयातीना कारणे प्रकाशे छे एम नथी. खरेखर तो पर संबंधी पोतानुं जे ज्ञान छे तेने ते प्रकाशे छे. आवी वात छे त्यां मारा पैसा, मारो देह, मारी पत्नी, मारां संतान इत्यादि कयां रह्युं? कोनां छोरुं अने कोनां वाछरुं? कोनां मा अने बाप? भगवान! कोना देश अने परदेश? बापु! तारो देश तो प्रभु असंख्य प्रदेशी अंदर छे, तेमां अनंत गुणनी प्रजा वसे छे. अने स्वरूपमां रहीने एकलुं जाणवुं ए ज तारो स्वभाव छे. अहीं मुख्यपणे ज्ञेयज्ञायकनी वात करवी छे, केमके बीजा गुणो करतां ते ज्ञानस्वभाव असाधारण शक्ति धरावे छे. ज्ञान सिवाय बीजी शक्तिओ तो निर्विकल्प पणे सत्ता धरावे छे. ज्ञानशिक्त सविकल्प छे. अर्थात् स्व अने परने जाणवाना सामर्थ्यवाळी ते एक ज शक्ति छे. आवी ज्ञानस्वभावी वस्तुमां परने मारी शकुं के परनी दया पाळी शकुं के पर पासेथी कांई लई शकुं-एवुं कयां छे? अरे! शास्त्रने जाणतां, शास्त्रमांथी जाणवानी पर्याय आवे छे एम नथी, केमके शास्त्र तो पर छे, पुद्गलमय छे जयारे ज्ञानपर्याय तो ज्ञायक भगवान जे स्वपरने प्रकाशवाना सामर्थ्यरूप तत्त्व छे तेनाथी थाय छे. अहाहा? तेथी धर्मी एम माने छे के-मारे परद्रव्यो साथे कांई संबंध नथी. तेओ मारा कांई संबंधी नथी. देव मारा संबंधी नथी, गुरु मारा संबंधी नथी अने मंदिर पण मारुं नथी. हुं तो एक चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा छुं, परमां गया विना अने पर वस्तु मारामां आव्या विना तेने जाणवाना स्वभाववाळो छुं.
सर्व परद्रव्यो मारां संबंधी नथी कारण के टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकस्वभावपणाथी परमार्थे अंतरंग तत्त्व तो हुं छुं. हुं तो ज्ञायकस्वभावना-स्वरसना सत्नुं सत्त्व छुं. हुं आत्मा सत् अने ज्ञायकपणुं ए मारुं सत्त्व छे. तेथी ज्ञायकस्वभावपणाथी हुं अंतरंग तत्त्व छुं अने ते परद्रव्यो, मारा स्वभावथी भिन्न स्वभाववाळां होवाथी परमार्थे बाह्यतत्त्वपणाने छोडवा असमर्थ छे. अहाहा! सिद्ध भगवान अने सर्वज्ञ परमेश्वर अरिहंत परमेष्ठी पण मारा स्वभावथी भिन्न स्वभाववाळा छे. तेथी तेओ परमार्थे बाह्यतत्त्वपणाने छोडवा असमर्थ छे. बाह्य पदार्थो मारा स्वभावथी भिन्न छे अने पोताना स्वभावने छोडवा असमर्थ छे. अर्थात् तेओ पोताना स्वभावमां ज टकी रहेता होवाथी पोताना स्वभावनो अभाव करी ज्ञानमां पेसतां नथी. बाह्य अनंत तत्त्वो - परज्ञेयो पोतानी हयाती-पोताना स्वभावनुं सत्त्व छोडवा असमर्थ छे अने हुं मारुं अंतरंगतत्त्व जे ज्ञायकपणुं छे ते छोडवा असमर्थ छुं. ज्ञान स्व अने परने पोतानी अस्तिमां रहीने जाणतुं होवाथी ज्ञेय ज्ञानमां पेसतुं नथी तथा ज्ञान ज्ञेयमां जतुं नथी. आम बे विभाग तद्न जुदा छे-(१) अंतरंगतत्त्व ज्ञायक पोते अने (२) बाह्यतत्त्व सर्व परज्ञेयो. जुओ, आ ज्ञेयभावना भेदज्ञाननो प्रकार कहे छे.
ज्ञेयभावथी तारुं तत्त्व जुदुं छे एम तुं अनुभव. तारी द्रष्टिने त्रिकाळीतत्त्व ज्ञायक