Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३७ ] [ २०प उपर जोडी दे के जे तुं ज छे. जे तुं नथी ए परज्ञेयोथी द्रष्टि हठावी ले-एम अहीं कहे छे. हवे कहे छे-वळी हुं स्वयमेव नित्य उपयुक्त एवो अने परमार्थे एक, अनाकुळ आत्माने अनुभवतो एवो भगवान आत्मा छुं. नित्य उपयुक्त एटले नित्य जाणवा- देखवाना उपयोगवाळो, नित्य ज्ञानना उपयोगना वेपारवाळो छुं. परमार्थे एक छुं एटले ज्ञानमां एकरूप छुं, जेमां भेद नथी एवो एक अनाकुळ शांतरसनो कंद प्रभु अतीन्द्रिय आनंदनुं ढीम हुं छुं. मारा आनंद माटे निमित्तनी अपेक्षा मने नथी, केम के निमित्तमां मारो आनंद नथी. तेवी ज रीते मारा ज्ञानप्रकाशने माटे निमित्तनी जरूर नथी, केम के मारो ज्ञानप्रकाश एमां नथी. भगवान समोसरणमां साक्षात् बिराजता होय अने तेमनी वाणी छूटे एनुं ज्ञान मने थाय ते मारा वडे माराथी थाय छे अने तेनाथी हुं अनाकुळ आनंदने वेदुं छुं. परंतु ए परने लईने मने ज्ञान थाय अने परना कारणे मने आनंद थाय एम नथी; कारण के मारुं ज्ञान अने मारो आनंद त्यां परमां छे ज नहि.

भाई! चैतन्यनी स्वपरप्रकाशक ज्ञाननी सत्ताना सामर्थ्यने जेणे जाण्युं नथी, जेणे अनुभवमां तेनी सत्तानो स्वीकार कर्यो नथी तेने धर्म कयांथी थाय? अहीं कहे छे के पोताथी ज नित्यउपयोगमय अने परमार्थे एक अनाकुळ एवा आत्माने पोतानी ज्ञान-परिणतिमां अनुभवतो, अनाकुळ आनंदने वेदतो भगवान आत्मा ज जाणे छे के हुं प्रगट निश्चयथी एक ज छुं. खरेखर एक ज्ञायकभावस्वरूपे अनाकुळ आनंदने वेदतो हुं एक छुं. निश्चयथी एक होवाथी पर्यायना भेदो पण मारामां नथी.

जिनेश्वरदेवनो मार्ग भाई! बहु सूक्ष्म अने अपूर्व छे. सर्पने पकडवा मोटा साणसा होय पण मोतीने पकडवा ए साणसा शुं काम आवे? (ना). तेम भगवान आत्माने पकडवामां स्थूळ विकल्प काम न आवे. ए तो निर्विकल्प ज्ञान अने आनंदथी पकडाय एम छे. आवां निर्विकल्प ज्ञान अने आनंद जेने प्रगट छे ते सम्यग्द्रष्टि ज्ञानी आत्माने एम अनुभवे छे के-हुं तो एक छुं. हुं एक ज्ञायक चैतन्यस्वरूप छुं अने आ शरीर, वाणी, मन, देव, गुरु, शास्त्र ए बधां परज्ञेय छे. ते मारी चीज नथी के मारामां नथी. ते मारा कारणे नथी अने हुं तेना कारणे नथी. हुं ज्ञायक छुं अने ते ज्ञेय छे एवो मात्र ज्ञेयज्ञायकभाव छे.

ते ज्ञेयज्ञायकभावमात्रथी परद्रव्यो साथे परस्पर मळवुं (मिलन) थयुं होवा छतां पण, प्रगट स्वादमां आवता स्वभावना भेदने लीधे भिन्नता छे. शिखंडमां जेम मीठो अने खाटो स्वाद बे भेगा होवा छतां पण, मीठो स्वाद खाटाथी जुदो जणाय छे तेम सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माने भगवान आत्मानो स्वाद परना स्वादथी जुदो जणाय छे. आवुं जाणे अने श्रद्धे त्यारे आत्माने जाण्यो-मान्यो-अनुभव्यो एम कहेवाय छे. आ सम्यग्दर्शन अने धर्मनी रीत छे. आ मूळ वातने मूकीने महाव्रत लीधां, ब्रह्मचर्य पाळ्‌यां, केशलोच