Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 487 of 4199

 

२०६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ कर्या इत्यादि बाह्य क्रियाकांडमां धर्म मानी मूर्छाई गयो पण ए तो बधां थोथेथोथां छे. ए तो शुभविकल्प छे. पण भगवान आत्मा निर्विकल्प छे. एमां ते विकल्प कयां छे? हुं शुभ विकल्पवाळो एम विचारवाने बदले हुं चैतन्यघनस्वरूप अनादि अनंत तत्त्व छुं एम विचारने? ज्ञानी तो कहे छे के हुं तो अनादि अनाकुळ आत्माने अनुभवतो भगवान छुं.

अज्ञानीने पण जडनो स्वाद आवतो नथी. फक्त तेना उपर लक्ष करीने ‘आ ठीक छे’ एम रागनो स्वाद तेने आवे छे. परंतु धर्मी तो कहे छे के रागनो भाव पण पर छे. ते मारा ज्ञानमां परज्ञेय तरीके हयाती राखनार तत्त्व छे-एम जणाय छे. ए राग छे माटे एने जाणुं छुं एम नथी. तथा रागने, एनामां प्रवेश करीने जाणुं छुं एम पण नथी. भाई! तने तारा स्वभावना सामर्थ्यनी खबर नथी, श्रद्धा नथी. एक समयमां लोकालोकने जाणे एवो तारो स्वभाव छे. भले श्रुतज्ञान हो. श्रुतज्ञान परोक्ष छे अने केवळज्ञान प्रत्यक्ष छे एटलो ज फेर छे. श्रुतज्ञानमां पण पोते पोताने जाणतां पोतानी हयातीमां, लोकालोक जणाई जाय छे. खरेखर तो लोकालोक जणाय छे एम कहेवुं ते व्यवहार छे. अहाहा! वीतरागनो मार्ग बहु झीणो छे, भाई!

भगवान आत्मा जाणे छे के हुं तो प्रगट निश्चयथी एक ज छुं. पर अनेक ज्ञेयोने जाणतां हुं अनेकरूप थतो नथी. अनेक परज्ञेयोने जाणतां छतां हुं अनेकमां जतो नथी, अने ते अनेक ज्ञेयो मारा ज्ञानमां आवता नथी. हुं तो ज्ञायकमात्र अनाकुळ आनंदने अनुभवतो आत्मा छुं. अहीं एकलुं जाणवानुं लीधुं नथी, कारण के ज्ञानमां साथे आनंद पण छे. जेम आत्मामां ज्ञान छे तेम अतीन्द्रिय आनंद पण छे. माटे जेवुं आत्मानुं स्वपरप्रकाशक सामर्थ्य छे एवुं जाण्युं तो ज्ञाननी साथे आनंद पण आवे ज छे. आनंद आव्या विनानुं एकलुं ज्ञान ते ज्ञान ज कहेवातुं नथी. सर्वज्ञ त्रिलोकनाथनी दिव्यध्वनिमां आवेली आ वात छे. भाई! तुं आत्मा छे ने प्रभु! अने तुं प्रभु छे, पामर नथी. प्रभुने पामर मानवो ते मिथ्यात्व छे. अहाहा! अनंता ज्ञेयोने, ज्ञेयमां प्रवेश कर्या विना अने ज्ञेय ज्ञानमां आव्या विना जाणवानी ताकातवाळो तुं आत्मा छे. आवी तारी प्रभुता छे, अने ए ज इश्वरता छे. ३६ मी गाथामां आवी गयुं के-‘जेनी निरंतर शाश्वती प्रतापसंपदा छे’-तेमां आत्मानी प्रभुता बतावी छे. जेम ज्ञानस्वभाव छे तेम प्रभुता पण स्वभाव छे. जेणे पोताना ज्ञान अने प्रभुता स्वभावनुं भान कर्युं तेने पर्यायमां प्रभुता प्रगटे छे. तेने पोतानी पर्याय पोताना सामर्थ्यथी, अखंड प्रतापथी शोभित स्वतंत्र शोभे एवी प्रगट थाय छे.

पण अमारे करवुं शुं? भाई, आ करवुं के-हुं अंदर ज्ञानस्वरूपी भगवान अनंत अनंत गुणनुं गोद्राम, अनंत स्वभावनो सागर प्रभु अने अनंत शक्तिओनुं संग्रहालय-धाम छुं-एम जाणवुं. पण अज्ञानीने तेनी कयां खबर छे? तेने छोडीने ते परमां (शरीरादि