गाथा ३७ ] [ २०७ संयोगमां) राजी थई जाय छे. भगवान! तने आ शुं थयुं? तारुं भिखारीपणुं (रांकाई) तो जो. आ तारुं गांडपण छे, पागलपणुं छे. अहा! तुं त्रणलोकनो नाथ अने आटला सुखमां (संयोगमां) राजी थई जाय!! भगवान! तुं तो आनंदनो नाथ प्रभु छे. आ परचीज (संयोग) तारी नथी अने तुं तेनो नथी, ते ताराथी नथी अने तुं तेनाथी नथी. आ तारुं ज्ञान परचीजथी छे एम नथी. परचीजनी हयाती छे माटे ज्ञान जाणे छे एम पण नथी. तुं तारी सत्ताथी स्वपरने जाणे छे. स्वपरने जाणवाना सामर्थ्यवाळो तुं भगवान छे. तेने जाण तो अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवशे.
अहीं ‘ज्ञेयज्ञायकभाव मात्रथी’ एम कह्युं छे एटले शुं? के हुं ज्ञायक अने आ पर ज्ञेय छे ए तो कहेवा मात्र संबंध छे. आवा ज्ञेयज्ञायक संबंधथी परद्रव्यो साथे जाणे मेळ होय तेम जणाय छे. परंतु प्रगट स्वादमां आवता स्वभावना भेदने लीधे तेओ माराथी भिन्न छे. मारो-आत्मानो स्वाद अतीन्द्रिय आनंद छे, ज्यारे धर्मास्तिकाय आदि पर ज्ञेयो माराथी भिन्न छे. अहाहा! भगवाने जोयेला धर्मास्ति, अधर्मास्ति, आकाश, काळ, अन्य जीव अने कर्म आदि पुद्गलो ए बधा परज्ञेय छे अने हुं तो ज्ञानमां स्थित रहीने जाणवावाळो अतीन्द्रिय आनंदथी भरेलो भगवान छुं.
जड कर्म ए परज्ञेय छे. ते मने नडे के कर्म मारां छे एवुं वस्तुमां नथी. ‘कर्मे राजा, कर्मे रंक, कर्मे वाळ्यो आडो अंक’-एवुं आवे छे ने? भाई! ए बधी निमित्तनी वातो छे. पोतानी पर्याय विकाररूपे परिणमे त्यारे घातीकर्मने निमित्त कहेवाय छे. ज्यारे अघातीकर्म तो संयोगमां निमित्त छे. ते आठेय कर्म, तेनो प्रकृति, प्रदेश, स्थिति अने अनुभाग बंध-ए बधुंय ज्ञानमां परज्ञेय छे. तीर्थंकर प्रकृति बंधाय ए पण ज्ञानमां परज्ञेय छे. जेम शिखंडमां मीठो स्वाद, खाटा स्वादथी भिन्नपणे स्वादमां आवे छे तेम मारो आत्मानो स्वाद, धर्मास्तिकाय आदि परज्ञेयो तेनाथी भिन्न छे. मारो अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद परज्ञेयोथी भिन्न छे. माटे हुं तेनाथी जुदो छुं. आवो जिनेश्वरनो मार्ग कोई अपूर्व छे! पण लोकोए दया पाळवी अने बहारथी व्रत पाळवां इत्यादिमां धर्म मान्यो छे. पण एवुं तो अनंतवार कर्युं छे. ए तो रागनी क्रिया छे. एमां कयां आत्मा छे? आत्मा तो जाणनार स्वभावे छे. ते शुं रागमां आवे छे? (ना). परंतु अज्ञानीने तेनी (पोतानी) मोटप सुझती नथी. परने लईने मने ठीक पडे, परने लईने मने ज्ञान थाय एम मानी अज्ञानी पोतानी मोटप बीजाने आपे छे. अरे भगवान! आ तने शुं थयुं छे? तुं तो अनादि ब्रह्मस्वरूप भगवान छे ने!
भगवान आत्मा ज्ञानानंदस्वरूपी ब्रह्मानंदनो नाथ छे. तेनो प्रगट स्वाद अतीन्द्रिय आनंद छे. ज्यारे धर्मादि परज्ञेयोना स्वभावो माराथी भिन्न छे. आम प्रगट स्वादमां आवता स्वभावभेदने लीधे हुं, धर्म, अधर्म, आकाश, काळ, पुद्गल अने अन्य जीवो