Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३७ ] [ २०९ रह्यो छे. दया, दान, भक्ति अने खावुं, पीवुं, रळवुं, कमावुं इत्यादि पुण्य-पापना भाव ए चार गतिमां रखडवाना भाव छे. ते वडे जीव दुःखी छे. हवे जेने जन्म-मरण मटाडवां होय अने धर्म प्रगट करवो होय तेणे शुं करवुं एनी आ वात छे. प्रथम तो तेणे आ भगवान आत्माने, भावकनो भाव जे पुण्य, पाप, राग, द्वेष, दया, दान, भक्तिना आदिना विकारी भाव छे तेनाथी जुदो अनुभववो-जाणवो. तथा परज्ञेयना भावो जे शरीर, मन, वाणी, कर्म, स्त्री, कुटुंब, लक्ष्मी, देव, गुरु अने शास्त्र छे तेनाथी पण स्वज्ञेय आत्माने भिन्न जाणवो. अहीं कहे छे के अनादिथी विकारने तथा परज्ञेयने पोताना मानतो हतो ते मिथ्यात्व, भ्रम अने अज्ञान हतां. परंतु हवे ज्ञानानंदस्वरूप भगवान आत्माने भेदज्ञान वडे रागादि विकारथी अने परज्ञेयोथी भिन्न पाडीने तेने ‘आत्माराम’ कर्यो.

सर्व अन्यभावोथी एटले के राग, दया, दान, व्रत, भक्ति, हिंसा, जूठ, चोरी, क्रोध, मान आदि विकारी भावोथी अने शरीर, वाणी, मन, कर्म, देव, गुरु, शास्त्र आदि परज्ञेयोथी ज्यारे भिन्नता थई त्यारे उपयोग आत्मरूप थई जाय छे. भिन्न तो छे ज पण ज्यारे परभाव अने परज्ञेय बन्ने भिन्न छे एवी भिन्नता ज्ञानमां करी त्यारे उपयोग आत्मरूप थई जाय छे. वस्तु धर्म अलौकिक छे, भाई! पण जेमने सांभळवा य मळ्‌युं न होय ते बिचारा घणा एम ने एम दुःखी थई चार गतिमां रखडे छे. आ करोडपति अने अबजोपति ए बधा बिचारा छे. केम के तेमने आत्मानी अंतरंग ज्ञानानंद लक्ष्मी शुं छे एनी खबर नथी. जे पोतानामां नथी तेने पोताना मानी रह्यो छे ते मूर्ख छे, मिथ्यात्वना भ्रममां पडयो छे.

आत्मा ज्ञान अने आनंदस्वरूप प्रभु छे. तेमां जे राग, पुण्य अने पापना शुभाशुभ भाव छे ते भावक कर्मना निमित्ते थयेला औपाधिक भाव छे. ते आत्मानो स्वभाव नथी-एम एनाथी भिन्न पाडयो, अने परज्ञेय-चाहे देव, गुरु, शास्त्र, के सम्मेदशिखरनुं तीर्थ हो-एनाथी स्वज्ञेयने भिन्न पाडयो, त्यारे स्वयम् अयम् उपयोगो आत्मानम् एकम् बिभ्रत् आ उपयोग छे ते पोते ज पोताना एक आत्माने ज धारतो- एटले जाणवानो उपयोग जे अनादिथी रागने अने परज्ञेयने पोताना जाणतो हतो ते हवे राग अने ज्ञेयथी भिन्न पडी जतां आत्मारूप थई गयो अर्थात् पोताने पररूपे मानतो हतो ते उपयोग स्वभावरूप थई गयो. अहीं भेद पाडीने व्यवहारथी वात करी छे के-उपयोग छे ते पोते ज पोताना एक आत्माने धारे छे. खरेखर तो जे उपयोग छे ते स्वयं स्वरूपमां एकाकार थई जाय छे.

‘आ उपयोग छे ते पोते ज पोताना आत्माने धारतो’-एनो अर्थ ए छे के उपयोग आत्मारूप थई गयो, अभेद थयो. जाणवा-देखवानो व्यापार आत्मारूप थई गयो. दया, भक्ति, पूजा, जात्रा आदि भाव तो विकार छे, राग छे अने देव, गुरु, शास्त्र परज्ञेय