२१० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ छे, पर छे. ए रागादि भावथी अने परज्ञेयोथी भेद करीने निर्विकार उपयोग अंदर स्वज्ञेय एक ज्ञायकमात्रमां जामी जाय छे त्यारे उपयोग आत्मारूप थयो एम कहेवाय छे. त्यारे आत्मानो धर्म प्रगट थाय छे.
प्रगट थयो छे एवां दर्शनज्ञानचारित्रथी जेणे परिणति करी छे-शुं कहे छे? के भगवान आत्मा आनंदस्वरूप अने ज्ञानस्वरूप छे. ज्यारे उपयोग अंदर ज्ञायकमां लीन कर्यो त्यारे शक्तिमांथी सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी परिणति प्रगट थई गई. रागादि विकार अने परज्ञेयोथी भेद करीने, उपयोग ज्ञान, दर्शन, आनंद आदि जे वस्तुमां सामर्थ्यपणे छे एमां जाम्यो त्यां शक्तिमांथी दर्शन-ज्ञान-चारित्रनुं परिणमन पर्यायमां थई गयुं. आवो वीतरागनो मार्ग छे, भाई! एणे कोई दिवस सांभळ्यो नथी. कहे छे के-भगवान आत्मा अंदर सच्चिदानंद प्रभु शुद्ध छे. तेने जिनेश्वरदेव केवळज्ञानी परमेश्वरे आत्मा तरीके जोयो छे. ते आत्मा राग अने परज्ञेयोथी भिन्न छे. ते रागथी भिन्न निर्विकारी छे अने परज्ञेयथी भिन्न स्वज्ञेयरूप छे. आ आखरनी गाथा छे ने? पर्यायमां थतो राग मारो अने परज्ञेयो मारा एवी जे मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्रनी परिणति हती ते हवे गुलांट खाय छे एम कहे छे. शुद्धचैतन्यमूर्ति भगवान आत्मा परमानंदनो नाथ प्रभु ते हुं छुं एम उपयोग अंतर्लीन थई अंदर जामतां श्रद्धा-ज्ञान-चारित्रनी निर्मळ परिणति-पर्याय प्रगट थाय छे.
आ प्रमाणे श्रद्धा-ज्ञान-चारित्रनी निर्मळ परिणति प्रगट करी छे एवो ‘आत्माराम एव प्रवृत्तः’ ज्ञानी पोतानो आत्मारूपी जे बाग छे तेमां ज प्रवृत्ति करे छे. आ भेदथी वात करी छे. खरेखर तो ते उपयोग आत्मारूप थई जाय छे. राग, दया, दानना तथा हिंसादिना परिणाम मारा एम जे मानतो हतो अने परज्ञेयोमां हुं छुं अने ते मने लाभकारी छे एवुं जे मानतो हतो ते मान्यताथी अने रागादिथी भिन्न पडी हवे उपयोग आत्मामां जाय छे, क्रीडा करे छे अने आत्मारूप थई जाय छे. अहाहा! आ तो एक समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने जेणे जाण्यां छे ए वीतराग परमात्मा अरिहंतदेवनी वाणी छे. भाई! जेनां भाग्य होय तेने सांभळवा मळे. कहे छे के तुं आत्मा परमानंदनी मूर्ति प्रभु छे. तेनो उपयोग-व्यापार राग अने परज्ञेयमां जाय ते व्यभिचार छे. अने ते उपयोग परथी खसीने स्वमां जामे ए अव्यभिचारी परिणाम छे. आवी झीणी वात छे. ते समजे नहि अने जात्रा करे, पूजा करे, दान करे अने माने धर्म थई गयो, पण एमां तो धूळेय धर्म नथी. सांभळ ने, ए तो झेरनुं पगथियुं छे. अमृतनुं पगथियुं तो राग अने परज्ञेयथी भिन्न पडी स्वमां एकाकार थवुं ते छे.
अरेरे! वीतरागना मार्गने समजवानी दरकार पण करी नहि अने एम ने एम ढोरनी जेम मजुरी करीने, मरीने चाल्यो जाय छे. अहीं कहे छे के भगवान आत्मानो उपयोग अर्थात् जाणवा देखवानो भाव विकारभावथी भिन्न छे अने जेने पोताना मानतो