Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 2.

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जीव–अजीव अधिकार

गाथा–२

तत्र तावत्समय एवामिघीयते–

जीवो चरित्तदंसणणाणठिदो तं हि ससमयं जाण।
पोग्गलकम्मपदेसट्ठिदं च तं जाण
परसमयं।। २।।

प्रथम गाथामां समयनुं प्राभृत कहेवानी प्रतिज्ञा करी. त्यां ए आकांक्षा थाय के समय एटले शुं? तेथी हवे पहेलां समयने ज कहे छेः-

जीव चरित–दर्शन–ज्ञानस्थित स्वसमय निश्चय जाणवो;
स्थित कर्मपुद्गलना
प्रदेशे परसमय जीव जाणवो. २

गाथार्थः– हे भव्य! [जीव] जे जीव [चरित्रदर्शनज्ञानस्थितः] दर्शन-ज्ञान- चारित्रमां स्थित थइ रह्यो छे [तं] तेने [हि] निश्चयथी [स्वसमयं] स्वसमय [जानीहि] जाण; [च] अने जे जीव [पुद्गलकर्मप्रदेशस्थितं] पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां स्थित थयेल छे [तं] तेने [परसमयं] परसमय [जानीहि] जाण.

टीकाः– ‘समय’ शब्दनो अर्थ आ प्रमाणे छेः ‘सम’ तो उपसर्ग छे, तेनो अर्थ ‘एकपणुं’ एवो छे; अने ‘अय् गतौ’ धातु छे एनो गमन अर्थ पण छे अने ज्ञान अर्थ पण छे; तेथी एकसाथे ज (युगपद) जाणवुं तथा परिणमन करवुं ए बे क्रियाओ जे एकत्वपूर्वक करे ते समय छे. आ जीव नामनो पदार्थ एकत्वपूर्वक एक ज वखते परिणमे पण छे अने जाणे पण छे तेथी ते समय छे. आ जीव-पदार्थ केवो छे? सदाय परिणामस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति जेनुं लक्षण छे एवी सत्ताथी सहितछे. आ विशेषणथी, जीवनी सत्ता नहि माननार नास्तिकवादीओनो मत खंडित थयो तथा पुरुषने (जीवने) अपरिणामी माननार सांख्यवादीओनो व्यवच्छेद, परिणमनस्वभाव कहेवाथी, थयो. नैयायिको अने वैशेषिको सत्ताने नित्य ज माने