२२२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ होवापणामां-अस्तिपणामां ए पर्यायोना भेदो छे नहि. ए भेदोमां हुं आवतो नथी अने मारामां ए भेदो समाता नथी. तेथी संवर, निर्जरा अने केवळज्ञाननी पर्यायथी पण हुं अत्यंत जुदो छुं. हुं तो एक अखंड चैतन्यनो पिंड छुं, ज्ञाननो पिंड छुं, आनंदनो कंद अने पुरुषार्थनो पिंड छुं अने व्यावहारिक जे नवतत्त्वो तेमनाथी जुदो, अत्यंत जुदो छुं माटे शुद्ध छुं.
अहाहा! वस्तु आत्मा एकलुं चैतन्यनुं दळ छे. ए त्रिकाळस्वरूप छे. एक समयनी पर्यायमां ए त्रिकाळी द्रव्य कयां आवे छे? तेथी व्यावहारिक नवतत्त्वना भेदो- पर्यायो नथी एम कोई कहे तो एम नथी. तेओ पर्यायपणे, पर्यायना अस्तिपणे तो छे, परंतु त्रिकाळी ध्रुव द्रव्यमां ते नथी एम वात छे. ध्रुव द्रव्यमां पर्याय आवती नथी अने पर्यायमां द्रव्य आवतुं नथी. श्री समयसार गाथा ४९ मां ‘अव्यक्त’ ना छ बोल लीधा छे. तेमां पांचमा बोलमां एम लीधुं छे के-व्यक्त अने अव्यक्त बन्ने साथे जणाता होवा छतां व्यक्तने एटले पर्यायने हुं स्पर्शतो नथी एवो हुं द्रव्य छुं. श्री प्रवचनसारमां ४७ नयोनुं वर्णन कर्युं छे. तेमां छेल्ला बे नय अशुद्धनय अने शुद्धनय लीधा छे. तेमां एम लीधुं छे के माटीने केवळ माटीरूपे जोवी ते शुद्धनय छे अने माटीना अनेक जातना आकार विशेषो (वासण) थाय ते-रूपे जोवी ते अशुद्धनय छे. एम भगवान आत्मा एकली चिन्मात्र अभेद वस्तु ते शुद्ध छे. ए शुद्धनयनो विषय छे. अने आत्माने पर्यायथी जोवो ए अशुद्धनयनो विषय छे. जुओ, अशुद्धनयनो विषय पर्याय-नवतत्त्वना भेदरूप छे खरी, पण द्रव्यनी सत्तामां त्रिकाळ ध्रुव सत्त्वमां ए नथी. तेथी कहे छे नवतत्त्वोना व्यावहारिक भावोथी जुदो होवाथी शुद्ध छुं.
आ ३८ मी गाथा जीव अधिकारनी छेल्ली गाथा छे. आखा जीवतत्त्वनो सार बधो आमां प्रगट कर्यो छे. ज्ञानी एम अनुभवे छे के-हुं शुद्ध छुं. ‘हुं शुद्ध छुं’ एवो विकल्प नहि, एवो अनुभव छे. अहाहा! ते एम जाणे छे के-मारा सत्नुं सत्त्व छे ते त्रिकाळ छे, ध्रुव छे, नित्य छे, अभेद छे अने एकरूप छे. तेथी नवतत्त्वना व्यावहारिक भावोथी हुं अत्यंत जुदो छुं, भिन्न छुं. भिन्नताना त्रण प्रकार छे.
एक द्रव्य बीजा द्रव्यथी अत्यंत भिन्न छे ए एक वात.
पुण्य-पापना जे विकारीभावो छे एनाथी भगवान आत्मा भिन्न छे ए बीजी
कही अने त्रीजी द्रव्य अने पर्यायनी भिन्नता बतावी. एक समयनी पर्यायमां ए आखी वस्तु छे कयां? पर्याय द्रव्यने अडे छे कयां? अहाहा! पर्याय छे ए द्रव्यने स्पर्शती नथी अने द्रव्यस्वभाव पर्यायने स्पर्शतो नथी. पुद्गलादि (शरीर वगेरे) परद्रव्यो