Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३८ ] [ २२प

‘कोई पण परद्रव्य परमाणुमात्र मारापणे भासतुं नथी के जे मने भावकपणे के ज्ञेयपणे मारी साथे एक थईने फरी मोह उत्पन्न करे.’ जुओ, केवी स्वरूपनी निःशंक्ता अने द्रढता! धर्मात्मा अप्रतिहतपणे क्षायिकभाव लेवाना छे एम द्रढतानी वात करे छे. कहे छे के कोई पण परद्रव्य परमाणुमात्र पण मारापणे भासतुं नथी तो पछी भावकपणे के ज्ञेयपणे मारी साथे एक थईने ते फरी मोह केम उत्पन्न करे? अहाहा! शुं द्रष्टिनुं जोर! शुं वैराग्य अने उदासीनता!! कहे छे-मने हवे परद्रव्य मारुं छे एवो मोह उत्पन्न थाय एम छे ज नहि. हवे फरीथी मने मोह अर्थात् मिथ्यात्व उत्पन्न थशे ज नहि. श्री प्रवचनसारनी ९२ मी गाथामां पण आ रीते ज वात लीधी छे के-ते मोहद्रष्टि आगमकौशल्य अने आत्मज्ञान वडे नाश पामी छे, ते हवे फरीने उत्पन्न थवानी ज नथी. अहीं पण ए ज वात लीधी छे के ते मोह फरीथी शा माटे उत्पन्न थाय? कारण के निजरसथी ज मोहने मूळथी उखाडीने-फरी अंकुर न उपजे एवो नाश करीने, महान ज्ञानप्रकाश मने प्रगट थयो छे. मारा ज्ञान अने आनंदना रसथी मोहने मूळथी ज उखाडयो छे, फरीथी मोह न उपजे एवो मोहनो नाश कर्यो छे.

जुओ, आ पंचम आराना मुनिराज! भगवान केवळज्ञानीनो विरह होवा छतां पण पोताना अंतरअनुभवनी वात कहेतां एम फरमावे छे के-हुं तो ज्ञानस्वरूपी भगवान छुं एवो महान ज्ञानप्रकाश मने प्रगट थयो छे. तेथी राग अने परज्ञेय मारा छे एवो मोह हवे फरी मने उपजवानो नथी, केमके एने में मूळथी ज उखाडी दीधो छे. आनुं नाम आत्मा जाण्यो अने आ धर्म छे.

* गाथा ३८ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

आत्मा अनादिकाळथी मोहना उद्रयथी अज्ञानी हतो. एटले दर्शनमोहनो उदय हतो अने एने ते तरफनुं जोडाण हतुं. चैतन्यस्वभाव प्रति जोडाण करवुं जोईए ते नहि करतां स्वभावने छोडीने भावक जे मोहकर्म तेमां जोडाण कर्युं तेथी उत्पन्न भाव्य जे मिथ्यात्वभाव तेने लईने ते अनादिथी अज्ञानी हतो. ते श्री गुरुना उपदेशथी अने पोतानी काळलब्धिथी ज्ञानी थयो. श्री समयसार कळशटीकामां (कळश २८) आवे छे के अनादिथी जीव मरणतुल्य थई रह्यो छे. दया, दान, व्रतना परिणामथी मने लाभ थाय एम मानीने जीवे पोताने मारी नाख्यो छे, मरणतुल्य करी नाख्यो छे. ते भ्रान्ति परमगुरु श्री तीर्थंकरनो उपदेश सांभळतां मटे छे. श्रीगुरु पण जे तीर्थंकरनो उपदेश छे ए ज कहे छे. अरे! दया, दानना विकल्पथी मने लाभ थाय एम मानीने एणे आ जीवती जागती चैतन्यज्योतने-पोताना जीवतरनी ज्योतने हणी नाखी छे.

एवो अज्ञानी जीव श्री गुरुना उपदेशथी अने पोतानी काळलब्धिथी ज्ञानी थयो,