Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२२६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ पुरुषार्थ करतां काळलब्धि पाकी गई अने ते ज्ञानी थयो (सर्व समवाय साथे छे एम समजवुं), अने पोताना स्वरूपने परमार्थथी जाण्युं के हुं एक छुं, शुद्ध छुं, अरूपी छुं, दर्शनज्ञानमय छुं. अनंतवार शास्त्रभणतर वडे (विकल्पथी) स्वरूपने जाणेलुं, पण परमार्थथी स्वरूपने जाण्युं नहोतुं. अहाहा! सम्यग्दर्शन शुं चीज छे एना महिमानी लोकोने खबर नथी. स्वरूपने परमार्थथी जाणवाथी मोहनो समूळ नाश थयो, मूळमांथी मिथ्यात्वनो नाश थयो. अने भावकभाव अने ज्ञेयभावथी भेदज्ञान थयुं. भावकभाव एटले शुं? के मोहकर्म जेना निमित्ते जीवमां राग-द्वेष-मोहनी विकारी भाव्य अवस्था प्रगट थाय ते भावक. आवा भावकभावथी अने ज्ञेयभावथी एटले समस्त परद्रव्योथी तेने भेदज्ञान थयुं. अर्थात् रागथी अने ज्ञेयथी ते जुदो थयो. जुदो थयो तो शुं थयुं? के पोतानी स्वरूपसंपदा अनुभवमां आवी. अहाहा! भगवान अनंत अतीन्द्रिय आनंदनी लक्ष्मी, अतीन्द्रिय ज्ञान, अतीन्द्रिय श्रद्धा, अतीन्द्रिय शान्ति, आदि-स्वरूप संपदा अनुभवमां आवी. दया, दान आदिनो राग ए कांई जीवनी पोतानी संपदा नथी, ए तो विभाव छे. कोईने एम लागे के आमां तो व्यवहार उडी जाय छे. पण भगवान! व्यवहार तो राग छे. रागथी तो जुदो पडयो तो लाभ थयो. जेनाथी जुदुं पडवुं छे तेनाथी लाभ केवो? रागथी भिन्न पडतां स्वरूप संपदा अनुभवमां आवी. हवे फरीने मोह उत्पन्न केम थाय? न थाय. मोहने जडथी उखेडी नाखवाथी हवे फरी मोह उत्पन्न न थाय.

हवे, एवो आत्मानो अनुभव थयो तेनो महिमा कही प्रेरणारूप काव्य आचार्य कहे छे के आवा ज्ञानस्वरूप आत्मामां समस्त लोक निमग्न थाओः-

* कळश ३२ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

एषः भगवान् अवबोधसिंधुः आ ज्ञानसमुद्र भगवान आत्मा विभ्रमतिरस्करिणीम् भरेण आप्लाव्य विभ्रमरूप आडी चादरने समूळगी डूबाडी दईने (दूर करीने) प्रोन्मग्नः पोते सर्वांग प्रगट थयो छे. जीव अधिकारनो आ छेल्लो कळश छे. शुं कहे छे? के भगवान आत्मा ज्ञानसिंधु छे, पोते ज्ञानस्वरूप ज छे. ‘आ’ शब्द द्वारा एनुं प्रत्यक्षपणुं बताव्युं छे.

जेम पोतानी सामे मोटो समुद्र होय पण वच्चे चार हाथनी चादर होय तो समुद्र देखातो नथी. तेम राग अने पुण्यादि मारां छे, एवडुं ज मारुं अस्तित्व छे एवा मिथ्यात्वरूपी परिणमननी आड छे त्यां सुधी ज्ञानसमुद्र भगवान आत्मा देखातो नथी. चैतन्यस्वरूपथी विपरीत जे राग ते मारो अने एक समयनी पर्याय ते हुं एवी जे पर्यायबुद्धि हती ते विभ्रम हतो. ते विभ्रमनी चादरने डूबाडी दीधी, ते विभ्रमनो व्यय करी नाख्यो त्यारे पोते सर्वांग प्रगट थयो.

आत्मा परम परमेश्वरस्वरूप चिदानंद भगवान छे. रागादि मारा छे एवा विभ्रमनो