Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३८ ] [ २२७ व्यय करी, पोते ज्ञाननो समुद्र पर्यायमां प्रगट थयो. जेवो भगवान आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद, अतीन्द्रिय शान्ति अने अतीन्द्रिय ज्ञाननो स्वभाव छे, तेनो आश्रय लेतां विभ्रमनी चादर नाश थई गई, अने पोते पर्यायमां (प्र+उन्मग्नः) विशेषे उछळ्‌यो. वस्तु तो वस्तु छे ध्रुव. ए कांई प्रगट थई एम नथी. परंतु ध्रुवनी द्रष्टि थतां मिथ्यात्वनो नाश थयो अने जेवुं एनुं शुद्ध स्वरूप छे एवुं पर्यायमां विशेषे उछळ्‌युं अर्थात् शांति अने अतीन्द्रिय आनंदनी निर्मळ दशा प्रगट थई. अंदर पूर्णानंदनो नाथ चैतन्य भगवान ज्ञान अने आनंदथी भरेलो छे. तेनी द्रष्टि थतां विभ्रमनो नाश थयो अने ते पर्यायमां उछळ्‌यो, विशेषे उछळ्‌यो, विशेषे उछळ्‌यो एटले उत्कृष्टपणे परिणम्यो, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी पर्यायपणे परिणम्यो.

अहीं जीव अधिकार पूरो थाय छे ने? जेवुं स्वरूप छे तेवुं प्राप्त थतां अधिकार पूरो थाय छे. लखाणमां पूरो थाय छे अने भावमांय. तेथी कहे छे प्रोन्मग्नः सर्वांग प्रगट थयो. असंख्य प्रदेशे जे परिपूर्ण ज्ञान अने आनंदनुं केवळ स्वरूप छे तेमां द्रष्टिनी जमावट करवाथी ए पर्यायमां परिपूर्ण प्रगट थयुं. व्रत पाळवाथी, दया, दान करवाथी के उपवासादि करवाथी भगवान आत्मा प्रगट थयो एम नथी लीधुं. ए तो बधी रागनी क्रिया छे. अने रागथी आत्मा (वीतरागता) प्रगटे ए मान्यता तो विभ्रम छे. ए विभ्रमने मटाडी आ चैतन्यनो दरियो जे शुद्धचेतनासिंधु भगवान छे एमां द्रष्टि निमग्न करतां तेमां अतीन्द्रिय आनंदनी भरती सहित उछळ्‌यो छे.

चैतन्यसिंधु एटले चैतन्यनुं पात्र. भगवान आत्मा चैतन्यनुं पात्र छे, एटले ए रागनुं पात्र नथी. कह्युं छे ने के-‘शुद्ध चेतनासिंधु हमारो रूप है.’ ए तो शुद्ध चैतन्यनुं पात्र छे. आवा चैतन्यसिंधुमां द्रष्टि करी तेनो उग्र आश्रय करतां ते सर्वांग प्रगट थयो छे तेथी हवे अमी समस्ताः लोकाः आ समस्त लोक शान्तरसे समम् एव मज्जन्तु तेना शान्तरसमां एकी साथे ज अत्यंत मग्न थाओ. अहाहा! आचार्यदेवे सागमटे नोतरुं आप्युं छे. कहे छे के आ चैतन्यसिंधु प्रगट थयो छे तेथी समस्त लोक एटले लोकना बधा जीवो तेमां निमग्न थाओ. श्री अध्यात्म तरंगिणीमां ‘भव्य जीवो’ लीधा छे. अभव्य जीवो आत्मस्वरूप पामी शक्ता नथी एटले तेमां भव्य जीवो ज लीधा छे.

अहाहा! शुं संतोनी करुणानी धारा! कहे छे के-भगवान! तुं आनंदनुं अने शान्तरसनुं पात्र छे. तुं पूर्ण प्रभुतानुं धाम छे. जेमां पूर्ण प्रभुता वसेली छे एवुं तुं पात्र एटले स्थान छे. त्यां नजर करीने एमां ठरने प्रभु! लोको बिचारा बहारना क्रियाकांडमां पडीने अज्ञानमां जिंदगी काढे छे. व्रत, तप, उपवास, भक्ति वगेरे क्रियाकांडना विकल्प छे. ए आत्माना स्वरूपनी चीज नथी. छतां ए क्रियाकांड पाछळ जीवन वेडफी नाखे छे. ते लोकना प्रत्येक जीवने आह्वान आपी कहे छे-भगवान! तुं एकला ज्ञान,