Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२२८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ आनंद अने शान्तिनुं धाम छे. तुं ए तारा धाममां आवी जा ने. पुण्य-पापना स्थानमांथी खसी जईने आ आनंदधाममां आवी जा.

भगवान आत्मा शान्तरसनो समुद्र चैतन्यसिंधु हवे प्रगट थयो छे. तेथी समस्त लोक तेना शान्तरसमां एकी साथे ज अत्यंत मग्न थाओ. आचार्य कहे छे के आ समस्त भव्य जीवो अतीन्द्रिय आनंदगर्भित शान्तरसमां एटले वीतराग-रसमां एकी साथे अत्यंत मग्न थाओ. एकी साथे एटले एक पछी एक एम नहि पण बधाय साथे अत्यंत मग्न थाओ-अत्यंत मग्न थाओ एटले एवा मग्न थाओ के एमांथी बहार नीकळवानुं थाय ज नहि. अहाहा! जुओ तो खरा, केवी रामबाण वाणी छे! नहि पामी शके; थोडाक ज पामशे एवी वात ज अहीं लीधी नथी. पोते पाम्या तो बधाय जीवो पामो, बधाय जीवो शांतरस-वीतरागरसमां मग्न थाओ एम मीठो-मधुर संदेश आचार्यदेवे आप्यो छे. अभ्यास नथी एटले आकरुं लागे, पण वस्तुस्वरूप ज आवुं छे. भगवान त्रिलोकनाथ जिनेन्द्रदेवे आ रीते ज पूर्णदशा प्रगट करी, लोकालोकने जाणनारुं केवळज्ञान प्रगट कर्युं छे. एमणे उपदेश पण आ ज कर्यो छे.

प्रश्नः– समयसार कळश (४) मां आवे छे के जिनवाणीमां रमवुं. जिनवाणी तो बे नयोना आश्रये छे?

उत्तरः– श्री समयसार कळश (४)मां आवे छे के जिनवाणीमां रमवुं. तेनो अर्थ कोई एम करे छे के निश्चय अने व्यवहारमां रमवुं. अरे भाई! ए बेमां न रमाय. कळशटीकामां तेनो एवो अर्थ कर्यो छे के-दिव्यध्वनिमां कही छे उपादेयरूप शुद्ध जीववस्तु तेमां सावधानपणे रुचि-श्रद्धा-प्रतीति करवी. भगवाने शुद्ध आत्मा पूर्णानंदनो नाथ प्रभु जीवद्रव्यने उपादेय कह्युं छे. आदरवा लायक ते छे एम कह्युं छे. रागमां रमवुं एम त्यां कह्युं नथी. ए तो मात्र जाणवा योग्य कह्यो छे.

भगवान आत्मा एक समयमां पूर्ण-पूर्ण-पूर्ण अनंत गुणोनुं एक पात्र छे. अनंत गुणोथी भरपूर भरेलो ते भगवान उपादेय छे-एम भगवाननी वाणीमां आव्युं छे. ते एक आदरणीय छे, ते एक स्वीकार करवा लायक छे, ते एक सत्कार करवा योग्य छे. प्रभु! तुं एनी पूजा कर, एनी आरती उतार. तारा निर्मळ परिणामनी धाराथी एक एनी भक्ति कर, एने भज.

आचार्य कहे छे के-समस्त लोक आ शान्तरसमां अत्यंत अत्यंत मग्न थाओ, एवा मग्न थाओ के बहार आववुं पडे नहि. आ तो जीव अधिकारनी छेल्ली गाथा छे ने! कहे छे-शरीरने न जो, केमके ए तो माटी छे, हाडकानुं पिंजर छे. अंदर राग छे एने पण न जो, केमके आत्मा कांई रागनुं पात्र-स्थान नथी. आत्मा तो शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन स्वयंज्योति सुखधाम’ छे. निर्मळ पर्याय प्रगट करीने ए आत्माने जो, एमां मग्न था. आवो मार्ग छे! जिनेश्वरदेव दिव्यध्वनिमां आ कहेता हता अने संतो भगवानना