Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३८ ] [ २२९ आडतिया थईने ए ज कहे छे. भाई! आ काम तो पोते ज करवानुं छे. पोते सर्वांग प्रगट थयो छे एम कह्युं छे ने! देव-गुरु-शास्त्र आमां कांई मदद करता नथी, केमके जे स्वभाव प्रगट करवो छे तेनुं पोते ज पात्र छे, स्थान छे.

आत्मा अनंत वीतरागी शान्तिनो समुद्र छे. आचार्य कहे छे के तेने तुं पर्यायमां प्रगट कर. तुं पोते ज वीतरागी परिणतिरूप मोक्षमार्ग प्रगट कर. व्यवहारथी के निमित्तथी आ मोक्षमार्गनुं कार्य थतुं नथी. त्रण काळमां एनाथी न थाय. खरेखर तो जे मोक्षमार्ग प्रगट थयो ए एनी जन्मक्षण छे. स्वभावनो समुद्र भगवान पोते-एनी द्रष्टि-ज्ञान करीने जे चारित्र प्रगट कर्युं ए पर्यायनी उत्पत्तिनी जन्मक्षण छे, एने बीजा कशानी अपेक्षा नथी. वस्तुना क्रमबद्ध परिणमनमां पर्यायनो ज्यारे आवो क्रम छे त्यारे ते काळे पोते ज अर्क्तापणुं प्रगट करीने दर्शन-ज्ञान-चारित्रने प्राप्त थयो छे. वस्तुनी स्थिति ज आवी छे.

हवे कहे छे-केवो छे शांतरस? आलोकम् उच्छलति समस्त लोकपर्यंत उछळी रह्यो छे. एटले के उत्कृष्टपणे, पूर्णस्वरूपपणे उछळी रह्यो छे. अथवा पूर्ण लोकालोकने जाणे ए रीते उछळी रह्यो छे. भगवान आत्मा ज्ञान अने आनंद आदि अनंत गुणथी भरेलो शान्तरसनो समुद्र छे. एने उपादेय करी एमां एकाग्र थतां विभ्रमनो नाश थईने शक्तिनो जे संग्रह छे ते पर्यायमां बहार आव्यो छे. पूनमने दिवसे जेम दरियो भरतीमां पूरो उछळे छे तेम आ पूर्णवस्तु पूर्णपणे उछळी रही छे. अहाहा! आचार्य कहे छे शांतरस जेने उत्कृष्टपणे उछळी रह्यो छे एवा भगवान आत्मामां हे भव्य जीवो! तमे अत्यंत निमग्न थाओ जेथी शांतपणुं एटले चारित्रनी शांतिनी दशा अने अनंत आनंदरूप सुखनी दशा-एवी उत्कृष्टदशापणे भगवान आत्मा पर्यायमां परिणमी जशे. अहो! शुं वाणी! शुं समयसार!

मोक्षमार्ग के केवळज्ञानपणे आत्मा परिणमी जाय एनुं नाम जीवनो पूर्ण अधिकार प्राप्त थयो एम कहीए. शुद्धपणे परिणमे एने ज जीव कह्यो छे. वस्तु तो जीवपणे (त्रिकाळ) छे, पण (शुद्धपणे) परिणमे त्यारे तेने जीव कहेवामां आवे छे. कारणपरमात्मा तो त्रिकाळ शुद्ध ज छे, पण एनो स्वीकार करे त्यारे पर्यायमां शुद्धता प्रगटे छे. निगोदनी पर्याय हो के सिद्धनी पर्याय हो, आत्मा पूर्णानंदनो नाथ प्रभु तो त्रिकाळ शुद्ध एकरूप ज छे. परंतु हुं आवो छुं एम जेने बेसे तेने एवो छे. जेणे आवा निजस्वरूपथी विमुख थईने, रागने-विकल्पने पोतानो स्वीकार्यो छे तेने ए आत्मा छे ज नहि (केमके हुं आवो छुं एवुं एने कयां देखाय छे?). छती चीज पण एने अछती छे. अछती जे रागादि चीज ते अज्ञानीने छती देखाय छे. ए रागादिनुं लक्ष छोडीने शांतरसनुं स्थान सच्चिदानंद प्रभु भगवान आत्मानुं लक्ष करी एमां अत्यंत निमग्न थाओ जेथी अतीन्द्रिय आनंद थशे एम आचार्यदेवनो संदेश छे.