Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३८ ] [ २३१ प्रगट थाय अने केवळज्ञान प्रगट थतां समस्त लोकमां रहेला पदार्थो एकी वखते ज ज्ञानमां आवी झळके छे तेने सर्व लोक देखो. मिथ्यात्व अने अज्ञान जेने नाश थाय तेने (अल्पकाळे) केवळज्ञान प्रगट थाय ज. अथवा एवो पण अर्थ थाय के अज्ञान एटले अल्पज्ञपणुं दूर थाय त्यारे केवळज्ञान प्रगट थाय ज. केवळज्ञान एक समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने जाणे छे. सर्व जीवो अज्ञान दूर करी केवळज्ञानने प्राप्त थाओ एवी प्रेरणा करी छे.

आ प्रमाणे जीव अधिकारनी पूर्णता करतां जीवनुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते दर्शाव्युं. आ ग्रंथने अलंकारथी नाटकरूपे वर्णव्यो छे. नाटकमां पहेलां रंगभूमिस्थळ रचवामां आवे छे. त्यां जोनारा नायक तथा सभा होय छे अने नृत्य (नाटक) करनारा होय छे के जेओ अनेक स्वांग धारे छे तथा शृंगारादिक आठ रसनुं रूप बतावे छे. नाटकमां शृंगार, हास्य, रौद्र, करुणा, वीर, भयानक, बीभत्स अने अद्भुत-एम आठ रस होय छे. ते लौकिक रस छे (आ आठ रसने पण श्री बनारसीदासे लोकोत्तर स्वरूपमां उतार्या छे.) नवमो शांतरस छे ते अलौकिक छे. वीतरागभावरूप शांतरस ए आत्मानो अलौकिक रस छे. अतीन्द्रिय आनंद अने शान्तिनुं बिंब प्रभु आत्मा छे. ए त्रिकाळी शांतिनुं बिंब, जिनबिंब भगवान आत्मानो आश्रय लेतां परिणमनमां जे शांत-शांत-शांत अकषाय भाव उत्पन्न थाय छे तेने अहीं शांतरस कहे छे. एने शांतरस, आनंदरस, स्वरूपरस, अद्भुत रस एम अनेक प्रकारे कही शकाय छे.

जीवनुं वास्तविक स्वरूप ज्ञाता-द्रष्टास्वभावी छे. क्रमबद्धपर्यायना सिद्धांतमांथी पण न्यायपूर्वक जीव ज्ञाता-द्रष्टामात्र छे एम सिद्ध थाय छे. अहाहा! जीवनी पर्याय क्रमबद्ध छे. जे समये जे पर्याय थवानी छे ते ज थाय छे-एम कहीने जीवनो अर्क्तास्वभाव वर्णव्यो छे. जे कांई थाय एनो र्क्ता जीव नथी. एटले एनो अर्थ ए थयो के जीव ज्ञाताद्रष्टा छे.

वीतरागनुं कोई पण वचन हो, एनुं तात्पर्य तो वीतरागता ज छे. क्रमबद्धपर्यायना सिद्धांतनुं पण तात्पर्य वीतरागता छे. जीवने क्रमबद्धपर्यायनो ज्यां निर्णय थाय छे त्यां ते ज्ञाताद्रष्टा थई जाय छे. पोते ज्ञाताद्रष्टा थतां शास्त्रनुं तात्पर्य जे वीतरागता ते एने प्रगट थाय छे. ए वीतरागता पोताना त्रिकाळी द्रव्यना आश्रये प्रगट थाय छे. एटले क्रमबद्धपर्यायना निर्णयमां पण ज्ञातानो निर्णय थवो ए मूळ रहस्यनी वात छे.

आ ग्रंथने अलंकारथी नाटकरूपे वर्णव्यो छे. त्यां जोनारां सम्यग्द्रष्टि पुरुष छे तेम ज बीजा मिथ्याद्रष्टि पुरुषोनी सभा छे. सम्यग्द्रष्टि छे ए तो ज्ञाता-द्रष्टा छे. स्वांग अनेक प्रकारना आवे पण जोनारा सम्यग्द्रष्टि तेने ज्ञाता-द्रष्टा थईने देखे छे. अजीवनुं रंगस्थळ आवे के र्क्ताकर्मनुं, -ए बधाने ते पोते जाणनार-देखनार छे एवा भावे जाणे छे. सम्यग्द्रष्टि गमे ते प्रकारना स्वांगमां हो-आस्रव, बंध, र्क्ताकर्म इत्यादि गमे ते स्वांगमां