४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
अपरे संयोगेन तु कर्मणां जीवमिच्छन्ति।। ४२ ।।
एवंविधा बहुविधाः परमात्मानं वदन्ति दुर्मेधसः।
ते न परमार्थवादिनः निश्चयवादिभिर्निर्दिष्टाः।। ४३ ।।
_________________________________________________________________ तीव्रमंदपणारूप गुणोथी भेदने प्राप्त थाय छे [सः] ते [जीवः भवति] जीव छे’ एम [कर्मानुभागम्] कर्मना अनुभागने [इच्छन्ति] जीव इच्छे छे (-माने छे). [केचित्] कोई [जीवकर्मोभयं] जीव अने कर्म [द्वे अपि खलु] बन्ने मळेलांने ज [जीवम् इच्छन्ति] जीव माने छे [तु] अने [अपरे] अन्य कोई [कर्मणां संयोगेन] कर्मना संयोगथी ज [जीवम् इच्छन्ति] जीव माने छे. [एवंविधाः] आ प्रकारना तथा [बहुविधाः] अन्य पण घणा प्रकारना [दुर्मेधसः] दुर्बुद्धिओ-मिथ्या-द्रष्टिओ [परम्] परने [आत्मानं] आत्मा [वदन्ति] कहे छे. [ते] तेमने [निश्चयवि्रदभिः] निश्चयवादीओए (-सत्यार्थवादीओए) [परमार्थवादिनः] परमार्थवादी (-सत्यार्थ कहेनारा) [न निर्दिष्टाः] कह्या नथी.
अत्यंत विमूढ थया थका, तात्त्विक (परमार्थ भूत) आत्माने नहि जाणता एवा घणा अज्ञानी जनो बहु प्रकारे परने पण आत्मा कहे छे, बके छे. कोई तो एम कहे छे के स्वाभाविक अर्थात् स्वयमेव उत्पन्न थयेला रागद्वेष वडे मेलुं जे अध्यवसान (अर्थात् मिथ्या अभिप्राय सहित विभावपरिणाम) ते ज जीव छे कारण के जेम काळापणाथी अन्य जुदो कोई कोलसो जोवामां आवतो नथी तेम एवा अध्यवसानथी जुदो अन्य कोई आत्मा जोवामां आवतो नथी. १. कोई कहे छे के अनादि जेनो पूर्व अवयव छे अने अनंत जेनो भविष्यनो अवयव छे एवी जे एक संसरणरूप (भ्रमणरूप) क्रिया ते-रूपे क्रीडा करतुं जे कर्म ते ज जीव छे कारण के कर्मथी अन्य जुदो कोई जीव जोवामां आवतो नथी. २. कोइ कहे छे के तीव्र-मंद अनुभवथी भेदरूप थतां, दुरंत (जेनो अंत दूर छे एवा) रागरूप रसथी भरेलां अध्यवसानोनी जे संतति (परिपाटी) ते ज जीव छे कारण के तेनाथी अन्य जुदो कोई जीव देखवामां आवतो नथी. ३. कोइ कहे छे के नवी ने पुराणी अवस्था इत्यादि भावे प्रवर्ततुं जे नोकर्म ते ज जीव छे कारण के शरीरथी अन्य जुदो कोई जीव जोवामां आवतो नथी. ४. कोई एम कहे छे के समस्त लोकने पुण्यपापरूपे व्यापतो जे कर्मनो विपाक ते ज जीव छे कारण के शुभाशुभ भावथी अन्य जुदो कोई जीव जोवामां आवतो नथी. प. कोई कहे छे के शाता-अशातारूपे व्याप्त जे समस्त तीव्रमंदत्वगुणो ते वडे भेदरूप थतो जे कर्मनो अनुभव ते ज जीव छे कारण के सुख-दुःखथी अन्य जुदो कोई जीव देखवामां आवतो नथी. ६. कोई कहे छे के शिखंडनी