Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 523 of 4199

 

समयसार गाथा ३९ थी ४३ ] [ जेम उभयरूप मळेलां जे आत्मा अने कर्म, ते बन्ने मळेलां ज जीव छे कारण के समस्तपणे (संपूर्णपणे) कर्मथी अन्य जुदो कोई जीव जोवामां आवतो नथी. ७. कोई कहे छे के अर्थक्रियामां (प्रयोजनभूत क्रियामां) समर्थ एवो जे कर्मनो संयोग ते ज जीव छे कारण के जेम आठ लाकडांना संयोगथी अन्य जुदो कोई खाटलो जोवामां आवतो नथी तेम कर्मना संयोगथी अन्य जुदो कोई जीव जोवामां आवतो नथी. (आठ लाकडां मळी खाटलो थयो त्यारे अर्थक्रियामां समर्थ थयो; ते रीते अहीं पण जाणवुं.) ८. आ प्रमाणे आठ प्रकार तो आ कह्या अने एवा एवा अन्य पण अनेक प्रकारना दुर्बुद्धिओ (अनेक प्रकारे) परने आत्मा कहे छे; परंतु तेमने परमार्थना जाणनाराओ सत्यार्थवादी कहेता नथी.

भावार्थः– जीव-अजीव बन्ने अनादिथी एकक्षेत्रावगाहसंयोगरूप मळी रह्यां छे अने

अनादिथी ज जीवनी पुद्गलना संयोगथी अनेक विकारसहित अवस्थाओ थई रही छे. परमार्थद्रष्टिए जोतां, जीव तो पोताना चैतन्यत्व आदि भावोने छोडतो नथी अने पुद्गल पोताना मूर्तिक जडत्व आदिने छोडतुं नथी. परंतु जे परमार्थने जाणता नथी तेओ संयोगथी थयेला भावोने ज जीव कहे छे; कारण के परमार्थे जीवनुं स्वरूप पुद्गलथी भिन्न सर्वज्ञने देखाय छे तेम ज सर्वज्ञनी परंपरानां आगमथी जाणी शकाय छे, तेथी जेमना मतमां सर्वज्ञ नथी तेओ पोतानी बुद्धिथी अनेक कल्पना करी कहे छे. तेमांथी वेदांती, मीमांसक, सांख्य, योग, बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक, चार्वाक आदि मतोना आशय लई आठ प्रकार तो प्रगट कह्या; अने अन्य पण पोतपोतानी बुद्धिथी अनेक कल्पना करी अनेक प्रकारे कहे छे ते कयां सुधी कहेवा?

* * *

हवे जीवद्रव्य अने अजीवद्रव्य-ए बन्ने एक थईने रंगभूमिमां प्रवेश करे छे. त्यां शरूआतमां मंगळना आशयथी (काव्य द्वारा) आचार्य ज्ञाननो महिमा करे छे के सर्व वस्तुओने जाणनारुं आ ज्ञान छे ते जीव-अजीवना सर्व स्वांगोने सारी रीते पिछाणे छे. एवुं (सर्व स्वांगोने पिछाणनारुं) सम्यग्ज्ञान प्रगट थाय छे-ए अर्थरूप काव्य कहे छेः-

* समयसार कळश ३३ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

ज्ञान केवुं प्रगट थाय छे? तो कहे छे के ‘ज्ञानं मनो ह्लादयत् विलसति’ ज्ञान छे ते

मनने आनंदरूप करतुं प्रगट थाय छे. अहीं ज्ञान अने आनंद एम मुख्य बेनी वात करी छे. ज्ञान कहेतां जे जीव-शुद्धजीव तेनी (सम्यग्ज्ञानरूप) अवस्था मनने एटले आत्माने आनंदरूप करती प्रगट थाय छे. ज्ञान प्रगट थतां साथे (अतीन्द्रिय) आनंद होय तो तेने ज्ञान कहीए. ज्ञान प्रगट थयानी आ मुख्य निशानी छे. (अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव न होय तो ज्ञाननुं प्रगटवुं पण होतुं नथी.)