६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
हवे कहे छे-केवुं छे ते ज्ञान? ‘पार्षदान् जीव–अजीव–विवेक–पुष्कल–द्रशा प्रत्याययत्’ जीव-अजीवना स्वांगने जोनारा महापुरुषोने जीव-अजीवनो भेद देखनारी अति उज्ज्वळ निर्दोष द्रष्टि वडे भिन्न द्रव्यनी प्रतीति उपजावी रह्युं छे. भगवान आत्मा त्रिकाळ एकरूप अखंड ज्ञान अने आनंदनुं निधान छे. ए चैतन्यस्वभावनी जे द्रष्टि प्रगट थई अर्थात् निज निधानने जोनारी जे द्रष्टि थई ते अति उज्ज्वळ अने निर्मळ द्रष्टि छे. ए द्रष्टि जीव-अजीवने भिन्न भिन्न करी देखे छे. आवी निर्मळ द्रष्टि वडे प्राप्त थयेलुं ज्ञान गणधरादि संत-महंतोने जीव अने अजीव भिन्न द्रव्यो छे एवी यथार्थ प्रतीति उपजावी रह्युं छे. अचेतन शरीर अने रागादिथी चैतन्यधाम प्रभु आत्मा भिन्न छे एम ते ज्ञान सुस्पष्ट बतावी रह्युं छे.
जेमनुं बंधन द्रढ बंधायुं छे एवां ज्ञानावरणादि कर्मोना नाशथी जे विशुद्ध थयुं छे, स्फुट थयुं छे-जेम फूलनी कळी खीले तेम जे विकासरूप छे. आवुं आठेय कर्मथी अने आठे कर्मना निमित्तथी थता भावोथी रहित, भगवान आत्माना शुद्ध चैतन्य-स्वभावने प्रगट करतुं, आनंद सहित ज्ञान प्रगट थाय छे.
संसारदशा वखते पण आठ कर्म अने तेमना निमित्तथी थता भावथी भगवान आत्मा भिन्न ज छे. सिद्धदशा वखते आठ कर्मथी रहित थाय छे ए तो पर्याय अपेक्षाथी वात छे. पण जीवद्रव्यना स्वभावमां तो आठेय अजीव कर्मोनो त्रिकाळ अभाव छे. द्रव्यकर्म, भावकर्मथी भगवान आत्मा निश्चयथी भिन्न ज छे. एवा (भिन्न) आत्मानुं भान करीने कर्मोने नाश करतुं ज्ञान प्रगट थाय छे. ज्यां पोते स्वभावसन्मुख थाय छे त्यां विकार अने कर्म बन्ने छूटा पडी जाय छे. एने कर्मनो नाश कर्यो एम कहेवामां आवे छे.
जेम फूलनी कळी अनेक पांखडीथी विकसित थई खीली नीकळे तेम ज्ञान प्रगट थतां भगवान आत्मा अनंत गुणोनी पांखडीथी पर्यायमां खीली नीकळे छे. सम्यग्दर्शन थतां पण अनंत गुणोनो विकास पर्यायमां थई जाय छे. कह्युं छे ने के-‘सर्वगुणांश ते समक्ति.’ ज्ञान अने आनंद आदि अनंतगुणो जे शक्तिरूपे विद्यमान हता ते पर्यायमां प्रगट थाय छे.
वळी ते ज्ञान केवुं छे’ ‘आत्म–आरामम्’ जेनुं रमवानुं क्रीडावन आत्मा ज छे अर्थात् जेमां अनंत ज्ञेयोना आकार आवीने झळके छे तोपण पोते पोताना स्वरूपमां ज रमे छे. जुओ, अनंत ज्ञेयोने जाणनारुं ज्ञान पोताना सामर्थ्यथी ज थाय छे, ज्ञेयोथी नहि. ते ज्ञान कांई ज्ञेयोमां जतुं नथी. पोताना भावमां अने पोताना क्षेत्रमां ज ए रमे छे, आराम पामे छे. अनंत ज्ञेयोने जाणवा छतां पोते पोताना ज्ञानमां ज रमे छे. अहाहा!