समयसार गाथा ३९ थी ४३ ] [ ७ ज्ञानस्वरूप भगवान परथी भिन्न पडीने ज्यां स्वस्वरूपे खीली नीकळ्यो त्यां ज्ञेयोने जे पोताना मानतो हतो ते मान्यता छूटी गई. हवे ज्ञेयो जे छे तेमने जाणनारुं मात्र ज्ञान छे अने ते पोते पोताना सामर्थ्यथी खीली उठयुं छे. अहो एक एक कळशमां अमृतचंद्राचार्यदेवे गजबनी वात करी छे. शुं तेमना वचनमां गंभीरता छे! अनंत ज्ञेयोने जाणतुं थकुं ज्ञान ज्ञानमां ज रमे छे (अन्यत्र नहि).
प्रकाशवाळुं ते ज्ञान छे. अने ‘अध्यक्षेण महसा नित्यउदितम्’ प्रत्यक्ष तेजथी ते नित्य उद्रयरूप छे. भगवान ज्ञानस्वरूप ज्यां प्रगट थयो ते नित्य प्रगटरूप ज रहे छे. केवळज्ञान थयुं के सम्यग्ज्ञान थयुं ते प्रगट ज रहे छे.
नथी पण निश्चल छे, अचंचळ छे तथा प्रत्येक समये नवी नवी पर्याये प्रगटे छे एवुं उद्रात्त छे. वळी ‘अनाकुलम्’ अनाकुळ छे. इच्छाओथी रहित निराकुळ अतीन्द्रिय सुखपणे छे. धीर, उद्रात्त अने अनाकुळ ए त्रण विशेषणो आत्माना परिणमननी त्रण शोभा जाणवी. आवो भगवान आत्मा जे ज्ञानना विलासनी रमतमां रमे छे एने आत्मा कहीए.
आ ज्ञाननो महिमा कह्यो. वर्तमान प्रगट ज्ञाननो आ महिमा बताव्यो छे. जीव अजीव एक थई रंगभूमिमां प्रवेश करे छे, तेमने आ ज्ञान ज भिन्न जाणे छे. जेम नृत्यमां कोई स्वांग आवे तेने जे यथार्थ जाणे तेने स्वांग करनारो नमस्कार करी पोतानुं रूप जेवुं होय तेवुं ज करी ले छे. तेवी रीते अहीं पण आ ज्ञान रागने रागरूपे अने ज्ञानने ज्ञानरूपे यथार्थ जाणी ले छे. त्यारे जे जे स्वरूप जेनुं छे ते ते स्वरूपे ते भिन्न पडीने रहे छे. ज्ञान ज्ञानरूपे रहे छे अने राग रागरूपे रहे छे. पोतपोताना स्वरूपमां बन्ने भिन्नपणे रहे छे.
आवुं ज्ञान सम्यग्द्रष्टि पुरुषोने होय छे. जेवी वस्तु पूर्ण सत्य छे तेवी द्रष्टि तेनुं नाम सत्द्रष्टि एटले सम्यग्द्रष्टि छे. भगवान आत्मा पूर्ण प्रभु सच्चिदानंदस्वरूप छे. सत् एटले शाश्वत ज्ञान अने आनंदस्वरूप परिपूर्ण वस्तु. आवा सत्नी जेने द्रष्टि थई ते सम्यग्द्रष्टि जीव छे. सम्यग्द्रष्टिने ज आवुं (राग अने ज्ञानना भिन्नपणानुं) यथार्थ ज्ञान होय छे. मिथ्याद्रष्टि आ भेदने जाणता नथी. दया, दान, व्रत आदि जे राग आवे तेने अज्ञानी पोतानो माने छे अने तेनो र्क्ता थईने करे छे. मिथ्याद्रष्टि जीव साधु पण अनंतवार थयो अने अनंतवार पंच महाव्रत पाळ्यां. पण ए तो बधा विकल्प