८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ छे. ए विकल्पोने अज्ञानी र्क्ता थईने करे छे केमके राग अने ज्ञानना भेदने ते जाणतो नथी. राग अने स्वभावने अज्ञानी तो एकपणे माने छे. सम्यग्द्रष्टिने ज राग अने स्वभावनी भिन्नतानुं यथार्थ ज्ञान अने श्रद्धा होय छे.
हवे जीव-अजीवनुं एकरूप वर्णन करे छेः-
आ जगतमां आत्मानुं असाधारण लक्षण नहि जाणवाने लीधे नपुंसकपणे अत्यंत विमूढ थया थका, तात्त्विक (परमार्थभूत) आत्माने नहि जाणता एवा घणा अज्ञानी जनो बहु प्रकारे परने पण आत्मा कहे छे, बके छे.
ज्ञान आत्मानुं असाधारण लक्षण छे. ज्ञान द्वारा ज ए जणाय एवो छे. ज्ञान द्वारा ज आत्मानी अनुभूति अने प्राप्ति (उपलब्धि) थई शके छे. ज्ञान एटले स्वसंवेदनज्ञान, सम्यग्ज्ञान. ए सम्यग्ज्ञान वडे आत्मलाभ थई शके छे. परंतु भगवान आत्मा ज्ञानस्वभावी छे एम नहि जाणवाने लीधे अज्ञानीओ नपुंसकपणे विमूढ थया छे. दया, दान, व्रत, तप, भक्ति इत्यादि शुभराग जे पुण्यभाव छे एनाथी धर्म थाय, एनाथी आत्मलाभ थाय एम माननाराओने अहीं नपुंसक कह्या छे. जेम नपुंसकने प्रजा न होय तेम शुभभावथी धर्म माननारने धर्मनी (रत्नत्रयरूप धर्मनी) प्रजा न होय. शुभभावथी धर्म थवानुं माननारने, भगवान आत्मा एनाथी भिन्न छे एवुं भान नथी. तेथी ते शुभभावमांथी खसीने शुद्धमां आवतो नथी. आ कारणे ते नामर्द्र. नपुंसक, पुरुषार्थहीन जीव छे. शुभाशुभ भावोथी भिन्न पडी पोताना ज्ञानस्वभावथी जे पोताने जाणे, अनुभवे एने मर्द अने पुरुष कह्यो छे, पछी भले ए स्त्रीनो आत्मा होय. स्त्री तो देह छे, आत्मा कयां स्त्री छे? (आत्मा तो शुभाशुभभावोनो उच्छेदक अनंतवीर्यनो स्वामी छे).
ए शुभभाव चाहे तो भगवाननी भक्तिनो होय के बार व्रत अने पंचमहाव्रतना पालननो होय, ए राग वडे आत्मा कदीय जणाय एम नथी. भाई! राग तो आत्माना चैतन्यस्वभावने घायल करे छे. जे घायल करे एनाथी आत्माने लाभ केम थाय? श्री समयसारजी गाथा १प४मां कह्युं छे के-मोक्षना कारणभूत सामायिकनी प्रतिज्ञा लईने जे अत्यंत स्थूळ संकलेशपरिणामोने तो (अशुभने तो) छोडे छे, पण अत्यंत स्थूळ विशुद्ध परिणामोमां (शुभभावमां) संतुष्ट चित्तवाळा थई ते विशुद्ध परिणामोने छोडता नथी ते सम्यग्द्रष्टि नथी. तेथी तेमने सामायिक होतुं नथी. रागनी मंदता होय तो ते पुण्य जरूर छे, पण ए पुण्य पवित्रताने रोकनारुं छे, आत्मानी पवित्रताने घायल करनारुं छे.
भले ने बहारथी मुनि थयो होय, नग्न थईने पंचमहाव्रत धारण कर्या होय, बाळब्रह्मचारी पण होय, परंतु पंचमहाव्रतना मंद रागमां रोकाईने जो एम माने के