Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा ३९ थी ४३ ] [ आ धर्म छे वा धर्मनुं साधन छे तो ते जीव नपुंसक छे, केमके ते शुद्धभावमां आवी शक्तो नथी. आवी धर्मनी वात कोई अलौकिक अने सूक्ष्म छे, भाई! धर्मनी प्रजा (पर्याय) जे छे ए तो शुद्ध छे, केमके भगवान आत्मा पोते परम पवित्र शुद्ध स्वरूप छे. ए पवित्रना आश्रये पवित्रता ज प्रगटे छे. अने पवित्रता प्रगटे ए ज धर्म छे.

श्री समयसारजी परिशिष्टमां ४७ शक्तिओनुं वर्णन करेलुं छे. त्यां एम लीधुं छे के आत्मामां एक वीर्य नामनी शक्ति छे. ते स्वरूपनी रचनाना सामर्थ्यरूप छे. पोताना स्वरूपनी रचना करे ते वीर्यशक्तिनुं कार्य छे. परंतु स्वरूपनी रचना करवाना बदले जे दया, दान, व्रत, करुणा इत्यादि शुभभावने-रागने रचे एने अहीं नपुंसक कह्यो छे. जे रागभावने रचे ए आत्मानुं बळ नहि, ए आत्मानुं वीर्य नहि.

भगवान आत्मा अनंतबळस्वरूप वस्तु छे. एनो बळगुण परिणमीने निर्मळता प्रगटावे, सम्यग्दर्शनादि निर्मळ निश्चयरत्नत्रय प्रगटावे एवुं एनुं स्वरूप छे. परंतु कोई एम कहे के भगवाननी स्तुति, वंदना, सेवा-पूजा करो, व्रतादि पाळो; तेथी आत्म-लाभ थशे. तो एम कहेनारा अने माननारा बधा वीर्यगुणने जाणता नथी अने तेथी आत्माने पण जाणता नथी. भाई! ज्ञान अने शुद्धता जेनो स्वभाव छे एवा निर्मळानंद प्रभु आत्माना लक्षे, जे निर्विकार स्वसंवेदनरूप निर्मळ शुद्ध ज्ञानना परिणाम थाय ते वडे जणाय एवी आत्मा वस्तु छे. परंतु अन्य कोई साधन-व्रत, तप, पूजा, भक्ति के व्यवहाररत्नत्रयना साधन वडे आत्मा जणाय एवी ए चीज नथी. निश्चयरत्नत्रय जे प्रगट थाय छे ते स्वभावना बळना पुरुषार्थे प्रगट थाय छे, व्यवहाररत्नत्रय छे माटे प्रगट थाय छे एम नथी.

प्रश्नः– परमात्मप्रकाश द्रव्यसंग्रह, इत्यादि शास्त्रोमां आवे छे ने के व्यवहार साधन छे?

समाधानः– भाई! ए तो निश्चय प्रगट थाय त्यारे बाह्य निमित्त शुं होय छे एनुं त्यां ज्ञान कराव्युं छे. करण (साधन) नामनो आत्मामां एक गुण छे. आ गुण वडे आत्मा पोते ज पोताना निर्मळ भावनुं साधकतम साधन छे. तेथी अंतर्मुख थई निज स्वभावने साधनपणे ग्रहण करी परिणमतां जे निर्मळ (निश्चयरत्नत्रयनी) पर्याय प्रगट थाय ए साधन गुणनुं कार्य छे. (व्यवहाररत्नत्रयनुं कार्य नथी, व्यवहाररत्नत्रय तो उपचारथी साधन कहेवामात्र छे).

पुण्यभावथी (धर्मनो) लाभ छे, ए आत्मानुं र्क्तव्य छे एम माननारा अत्यंत विमूढ छे. ‘अत्यंत विमूढ’ एवा कडक शब्दो आचार्यदेवे वापर्या छे. पण एमां आचार्य देवनी भारोभार करुणा छे.