१४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
शुभभावथी रहित आत्मा चैतन्यस्वरूप छे एम व्यवहारश्रद्धामां एणे मान्युं हतुं, व्यवहारश्रद्धामां एटले अचेतन श्रद्धामां (रागमां) मान्युं हतुं. पण वस्तु जे त्रिकाळ आनंदनो नाथ प्रभु एकलो ज्ञायकसत्त्वपणे बिराजमान छे तेनुं अंतरमां माहात्म्य कर्युं नहि. माहात्म्य एने पुण्य अने पापमां रही गयुं. एणे एम तो सांभळ्युं हतुं के शुद्ध आत्मानुं वेदन करे ते आत्मा छे, पण ए पुण्य-पाप सहितना वेदननी धारणा हती. जे ज्ञायक अखंड चैतन्यशक्ति नित्यानंदरूप ध्रुव-ध्रुव-ध्रुव एकाकार ए ज खरेखर आत्मा छे. पर्यायमां एनो स्वीकार करीने आ चैतन्यतत्त्व ए ज हुं छुं एम वेदन कर्या विना आ हुं छुं एम विकल्पमां धारणा करी हती. परंतु प्रत्यक्ष वेदन करीने एमां अहंपणुं एणे न कर्युं. स्वभावनी अंतरमां जईने ‘आ हुं छुं’ एवी प्रतीति करी नहि. अंतरमां जईने एटले कांई वर्तमान पर्याय ध्रुवमां एक थईने एवो तेनो अर्थ नथी. अंतरमां जईने एटले स्वसन्मुख थईने. पर्याय ज्यारे ध्रुवनी सन्मुख थाय छे त्यारे परिपूर्ण तत्त्वनो प्रतिभास थाय छे.
१४४ मी गाथानी टीकामां ए वात लीधी छे के-‘श्रुतज्ञानतत्त्वने पण आत्मसन्मुख करतो, अत्यंत विकल्परहित थईने, तत्काळ निजरसथी ज प्रगट थता, आदि-मध्य-अंत रहित, अनाकुळ केवळ एक आखा विश्वनी उपर जाणे तरतो होय तेम, अखंड प्रतिभासमय....’ एटले पर्यायमां अखंडनो प्रतिभास थाय छे. अखंड वस्तु छे ते पर्यायमां आवती नथी पण अखंड प्रतिभासमय जे आत्मा तेनुं ज्ञान पर्यायमां आवे छे. पर्यायमां परमात्मस्वरूपनुं ज्ञान थई जाय छे अने एवुं जणाय त्यारे पर्यायमां परमात्मपणुं कार्यपणे परिणमे छे. पर्याय छे ते खंड छे, अंश छे. ते ज्यारे वस्तु तरफ ढळे छे त्यारे तेमां अखंड प्रतिभासमय वस्तु आखी जणाय छे.
खरेखर तो द्रव्य, गुण. पर्यायमां (त्रणेमां) प्रमेयत्वगुण व्यापेलो छे. तेथी पर्यायमां (ज्ञानमां) द्रव्य, गुण, पर्याय जणाय छे. परंतु अज्ञानीने, त्रिकाळी पोतानामां जणाय छे एवुं लक्ष नथी केमके एनी द्रष्टि अंतर्मुख नथी. अंतर्मुख ज्ञाननी वात एणे पर्यायमां धारी हती, परंतु ज्ञाननी वर्तमान प्रगट अवस्थाने स्वज्ञेयमां ढाळी न हती. तेथी धारणामां आव्युं छतां रही गयो अज्ञानी. ज्ञाननी पर्याय जे प्रगट छे ए, त्रिकाळी वस्तु अने पोताने (पर्यायने) पण जाणे छे एवुं एणे धारणामां लीधुं हतुं, पण वस्तुनो जे स्वभाव छे तेने ए अडयो नहोतो. ज्ञान, ज्ञानने जाणे तो छे, पण हुं ज्ञानने जाणुं छुं एवी एने खबर नथी. ज्ञान ज्ञानने जाणे छे एम नक्की थाय तो आखुं ज्ञेय एमां जणाय छे ए पण नक्की थई जाय.
श्री नियमसारनी ३८ मी गाथामां एम आवे छे के पर्याय छे ए तो व्यवहार आत्मा छे. मोक्षमार्गनी पर्याय ए पण व्यवहार छे. निश्चय आत्मा तो त्रिकाळी शुद्ध