समयसार गाथा ३९ थी ४३ ] [ १प ध्रुव-ध्रुव-ध्रुव, पर्यायनी सक्रियतारहित निष्क्रिय वस्तु छे. श्री समयसारनी ३२० गाथानी श्री जयसेनाचार्यनी टीकामां पण कह्युं छे के आत्मा निष्क्रिय छे. परंतु ए निष्क्रिय (आत्मा) जणाय छे सक्रियमां (पर्यायमां). सर्वज्ञनो आवो अद्भुत मार्ग छे. जेना पंथमां सर्वज्ञ नथी एना पंथमां सत्य वात होती ज नथी.
पहेलां दर्शनउपयोग अने पछी ज्ञानउपयोग एवो क्रम जे केवळीने माने छे तथा केवळीने क्षुधानी पीडा अने आहार माने छे तेने सर्वज्ञना साचा स्वरूपनी खबर नथी. पूर्णज्ञाननी दशा एटले शुं ए, ते जाणतो नथी. आत्मा अंदर सर्वज्ञशक्तिथी परिपूर्ण भरेलो छे. एनी सन्मुख थई एमां पूर्ण एकाग्र थतां सर्वज्ञपणुं पर्यायमां प्रगटे छे. सर्वज्ञपणुं प्रगट थतां अतीन्द्रिय आनंदनी पूर्ण भरती आवे छे एवा स्वरूपनी अज्ञानीने खबर नथी. भगवान केवळी सर्वदर्शी अने सर्वज्ञ एकी साथे छे.
अहीं आ गाथामां अज्ञानी कहे छे के कर्म अने आत्मा बन्ने एक छे. कारण के कर्मनी क्रियानो जे अनुभव एनाथी आत्मा जुदो छे एवुं कांई अमने देखातुं नथी. पण कयांथी देखाय, प्रभु? ज्यां प्रभु पडयो छे त्यां तुं जोतो नथी. भाई! कर्म अने आत्मा बन्ने थईने जीव छे, जुदो जीव नथी एवी तारी मान्यता पूर्ण शुद्ध आनंदघन प्रभु आत्मानी हिंसा करनारी छे. ए मान्यता वडे तुं पोतानी हिंसा करे छे. जीवतुं जीवन (त्रिकाळी जीवद्रव्य) तेनो तुं नकार करे छे ए ज हिंसा छे. भाई! वीतरागनो अहिंसानो मार्ग आवो सूक्ष्म अने झीणो छे. लोको बिचारा व्रत करो, पोसा करो इत्यादि शुभभावरूप क्रियाकांडमां गूंचवाई गया छे. पण निश्चयथी शुभभाव अने अशुभभाव बन्ने एक जात छे. (बन्नेमां चैतन्यस्वरूपनी नास्ति छे).
आठमो बोलः कोई कहे छे के अर्थक्रियामां समर्थ एवो जे कर्मनो संयोग ते ज जीव छे. कारण के जेम आठ लाकडाना संयोगथी अन्य जुदो कोई खाटलो जोवामां आवतो नथी तेम कर्मना संयोगथी अन्य जुदो कोई जीव जोवामां आवतो नथी. अहीं खाटलानुं द्रष्टांत आप्युं छे. खाटलो होय छे ने? ते आठ लाकडाना संयोगथी बनेलो छे. चार पाया, बे ईस अने बे उपडां-एम आठ लाकडानो बनेलो छे. ए रीते अज्ञानी एम माने छे के आठ कर्मनो संयोग ए ज जीव छे. आठ कर्मना संयोगरहित जीव होई ज न शके एम ते माने छे.
आत्मा त्रिकाळ संयोगथी रहित असंयोगी शुद्ध वस्तु छे. अज्ञानीनी त्यां द्रष्टि नथी. तेथी तेने आठ कर्म भेगां थाय ए ज जीव छे एम विपरीत भासे छे.
आम मिथ्या मान्यताना केटलाक प्रकार अहीं आप्या छे, बाकी असंख्य प्रकारनी मिथ्या मान्यता होय छे. दुर्बुद्धिओ अनेक प्रकारे परने आत्मा कहे छे. परंतु परमार्थना