समयसार गाथा-४४ ] [ १९
ननु किमनुपलब्धिर्भाति किंचोपलब्धिः।। ३४ ।।
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कोलाहल करवाथी [किम्] शो लाभ छे? [विरम्] ए कोलाहलथी तुं विरक्त था अने [एकम्] एक चैतन्यमात्र वस्तुने [स्वयम् अपि] पोते [निभृतः सन्] निश्चळ लीन थई [पश्य षण्मासम्] देख; एवो छ महिना अभ्यास कर अने जो (-तपास) के एम करवाथी [हृदय–सरसि] पोताना हृदयसरोवरमां [पुद्गगलात् भिन्नधाम्नः] जेनुं तेज-प्रताप-प्रकाश पुद्गलथी भिन्न छे एवा [पुंसः] आत्मानी [ननु किम् अनुपलब्धिः भाति] प्राप्ति नथी थती [किं च उपलब्धिः] के थाय छे.
भावार्थः– जो पोताना स्वरूपनो अभ्यास करे तो तेनी प्राप्ति अवश्य थाय; जो परवस्तु होय तो तेनी तो प्राप्ति न थाय. पोतानुं स्वरूप तो मोजूद छे, पण भूली रह्यो छे; जो चेतीने देखे तो पासे ज छे. अहीं छ महिनानो अभ्यास कह्यो तेथी एम न समजवुं के एटलो ज वखत लागे. तेनुं थवुं तो अंतर्मूहूर्तमात्रमां ज छे, परंतु शिष्यने बहु कठिन लागतुं होय तो तेनो निषेध कर्यो छे. जो समजवामां बहु काळ लागे तो छ महिनाथी अधिक नहि लागे; तेथी अन्य निष्प्रयोजन कोलाहल छोडी आमां लागवाथी जलदी स्वरूपनी प्राप्ति थशे एवो उपदेश छे. ३४.
आगळनी गाथामां अनेक प्रकारनी मिथ्या मान्यता बतावी. तेनो हवे उत्तर आपे छेः-
आ अध्यवसान आदि भावोनी हयाती कहेतां अस्तित्व तो छे. अशुद्धता छे ज नहि एम कोई कहे तो ते वात खोटी छे. जो अशुद्धता होय ज नहि तो पछी दुःखथी मुक्त थवानो उपदेश पण केम होय? दुःख न होय तो दुःखथी मुक्त थवानी वात रहेती नथी. परंतु दुःखथी आत्यंतिक मुक्त थवानो जे जिनोपदेश छे एनो अर्थ ज ए थयो के एक (शुद्ध) आत्मा सिवाय (संसारीने) पर्यायमां दुःख पण छे.
वळी कोई जो एम कहे के आत्मामां गुण नथी तो ए वात पण खोटी छे. हा, प्रकृतिना जे रजोगुण, तमोगुण इत्यादि छे ते आत्मामां नथी ए बराबर छे. परंतु वस्तुना गुणो एटले शक्तिओ तो वस्तुमां छे ज. तो श्री प्रवचनसारमां अलिंगग्रहणना १८मा बोलमां एम आवे छे ने के-‘आत्मा गुणविशेषथी नहि आलिंगित एवुं शुद्ध द्रव्य छे’? भाई! त्यां बीजुं कहेवुं छे. त्यां एम कहेवुं छे के सामान्य जे वस्तु ध्रुव-ध्रुव-