Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 538 of 4199

 

२० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ ध्रुव अखंड एकाकार छे ते गुणविशेषरूपे थती नथी. सामान्य चिद्रूप चीज जे ध्रुव छे तेमां गुणो छे तो खरा, पण गुण अने गुणीनो भेद ज्यां लक्षमां लेवा जाय त्यां विकल्प-राग ऊठे छे. तेथी सामान्य जे छे ते गुणविशेषने नहि आलिंगन करतुं शुद्ध द्रव्य छे एम त्यां कह्युं छे. सूक्ष्म वात छे, भाई! सम्यग्दर्शननो विषय अभेद एकाकार छे, गुण-गुणीभेद ए सम्यक्त्वनो विषय नथी. भेदना लक्षे नहि, पण पूर्ण सत् वस्तु जे अभेद एकरूप सामान्य चैतन्यस्वरूप छे तेना लक्षे सम्यग्दर्शन थाय छे.

आ समजवुं पडशे, हों. जेम वंटोळियानुं तरणुं कयां जईने पडे एनो कोई मेळ नथी तेम आनी समजण विना मिथ्या भ्रममां पडेलो जीव चोराशीना अवतारमां कयां जईने पडे एनो कांई मेळ नथी. वस्तु जे त्रिकाळ अभेद छे तेमां भेदनी नजरथी जोतां भेद छे तोपण वस्तु कदीय भेदपणे थती नथी. वस्तुनुं स्वरूप ज सहज आवुं छे.

आ अध्यवसानादि भावो छे ते बधाय, विश्वने साक्षात् देखनारा भगवान अर्हंतदेवो वडे, पुद्गलद्रव्यना परिणाममय कहेवामां आव्या छे. जुओ, श्री अरिहंतदेव विश्वने एटले के समस्त पदार्थोने साक्षात् जाणे-देखे छे. भगवानने केवळज्ञान-केवळदर्शनमां स्वपरप्रकाशकपणानुं संपूर्ण सामर्थ्य प्रगटयुं छे. तेथी तेओ आखा विश्वने देखे छे, जाणे छे.

खरेखर तो सर्वज्ञपणुं ए आत्मज्ञपणुं छे. केवळज्ञाननी पर्यायनो स्वभाव ज एटलो अने एवडो छे के ते स्व अने परने संपूर्ण प्रकाशे. लोकालोक छे तो पर्यायमां तेनुं ज्ञान थाय छे एम नथी. पर्यायनो ए सहज ज स्वभाव छे के ए समस्त विश्वने जाणे. स्वपरप्रकाशकपणानुं सामर्थ्य पोताथी ज प्रगटयुं छे. अरिहंतदेव विश्वने साक्षात् देखे छे एटले के पोतानी पर्यायमां पूर्णताने देखे छे. जेम रात्रिना समये कोई सरोवरना पाणीमां तारा, चंद्र वगेरे देखाय छे ते खरेखर तो पाणीनी ज अवस्था देखाय छे तेम ज्ञान खरेखर तो ज्ञानने ज संपूर्ण जाणी रह्युं छे.

श्री अरिहंतदेवने केवळज्ञाननी दशा एवी स्वच्छ अने निर्मळ प्रगट थई छे के एने देखतां आखुं लोकालोक जणाई जाय छे. अहीं सिद्ध भगवंतोनी वात लीधी नथी केमके सिद्धोने अरिहंतनी जेम वाणी (दिव्यध्वनि) होती नथी. एवा वीतराग, सर्वज्ञ अरिहंतदेवो वडे आ दया, दान, व्रत, तप, भक्ति, पूजा, शील, संयम आदि जे विकल्पो-शुभभावो छे ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय कहेवामां आव्या छे. अहाहा! जे भावे तीर्थंकर-नामकर्म बंधाय ते भावने पुद्गलद्रव्यना परिणाममय कह्या छे.

प्रश्नः– शुभभावोने अचेतन एवा पुद्गलद्रव्यना परिणाममय केम कह्या?

समाधानः– वस्तु आत्मा छे ए तो चैतन्यघनस्वरूप छे. अने आ शुभभावो छे ते चैतन्यना स्वभावमय नथी. श्री समयसार गाथा ६८ नी टीकामां लीधुं छे के-‘कारणना