समयसार गाथा-४४ ] [ २१ जेवां ज कार्यो होय छे,’ ‘जवपूर्वक जे जव थाय छे ते जव ज होय छे.’ जेम जवमांथी जव थाय तेम चैतन्यमांथी चैतन्य परिणाम ज थाय छे. आत्मा ज्ञानानंदस्वभावी छे. तेमांथी ज्ञान अने आनंदनी ज दशा थाय. तेमांथी आ जड, अचेतन शुभाशुभभावो केम थाय? तेथी पांच महाव्रत अने बार अणुव्रतना जे शुभ विकल्पो छे ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय छे, चैतन्यना परिणाममय नथी.
अशुद्धनिश्चयनयथी तेमने जीवना कहेवाय छे. परंतु अशुद्धनिश्चयनय एटले ज व्यवहार. खरेखर तो तेओ परना आश्रये (कर्मोद्रय निमित्ते) थता होवाथी ए भावो परना ज छे. अहीं तेमने पुद्गलद्रव्यना परिणाम एम न कहेतां अभेदपणे पुद्गलद्रव्यना परिणाममय एटले के पुद्गलद्रव्यना परिणामोथी एकमेक कह्या छे.
भाई, भगवान जिनेश्वरनो मार्ग कोई अलौकिक अने अद्भुत छे. मंद कषायनो गमे ते भाव होय, भगवान केवळीए एने पुद्गलद्रव्यना परिणाममय कह्यो छे केमके तेमां चैतन्यना नूरनो अंश नथी. कोई एने मोक्षनो मार्ग कहे तो ए महा विपरीतता छे. भले ए रागना परिणाममां स्पर्श, रस, गंध अने वर्ण नथी पण ए परिणाममां चैतन्यपणानो अभाव छे अने तेथी ए पुद्गलना परिणाममय छे. आगळ गाथा ६८ नी टीकामां अति स्पष्टपणे कह्युं छे के-आ मिथ्याद्रष्टि आदि गुणस्थानो पौद्गलिक मोहकर्मनी प्रकृतिना उद्रयपूर्वक थतां होईने, सदाय अचेतन होवाथी, पुद्गल ज छे-जीव नथी, केमके कारणना जेवां ज कार्यो होय छे.
हवे कहे छे के-तेओ (ते अध्यवसानो) चैतन्यस्वभावमय जीवद्रव्य थवा समर्थ नथी के जे जीवद्रव्य, चैतन्यभावथी शून्य एवा पुद्गलद्रव्यथी अतिरिक्त कहेवामां आव्युं छे. जुओ, स्वरूपथी जीवद्रव्य केवुं छे ते अहीं कह्युं छे. स्वरूपथी जीवद्रव्य शुद्ध चैतन्य-स्वभावमय छे. भगवान आत्मा चैतन्यस्वभावमय एक ज्ञायकमात्र छे. अहाहा! ए त्रिकाळी सत्नुं सत्त्व, भाववाननो भाव अभिन्न एक चैतन्यमात्र छे एने चैतन्यभावथी शून्य एवा पुद्गलद्रव्यथी, भिन्न कहेवामां आवेल छे.
तथा जे आ रागादि परिणाम, दया, दान, व्रत, भक्ति आदि शुभभावना परिणाम छे तेमने अर्हंतदेवोए पुद्गलद्रव्यना परिणाममय कह्या छे तेथी तेओ चैतन्यस्वभावमय जीवद्रव्य थवा समर्थ नथी. अहा! गजबनी वात करी छे. सघळाय पुण्यभावो-चाहे तो भगवाननी स्तुति हो, वंदना हो, भक्ति हो, के व्रत-तपना विकल्प हो के छकायना जीवोनी रक्षाना परिणाम हो-ए बधा जीवद्रव्य थवा समर्थ नथी केमके ते पुद्गलपरिणाममय छे, अधर्मना परिणाम छे.
श्री समयसार-कलशटीकाना १०८मा कळशमां कह्युं छे के-‘अहीं कोई जाणशे के