Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ शुभ-अशुभक्रियारूप जे आचरणरूप चारित्र छे ते करवा योग्य नथी तेम वर्जवायोग्य पण नथी.’

समाधानः– ‘उत्तर आम छे के-वर्जवायोग्य छे, कारण के व्यवहारचारित्र होतुं थकुं दुष्ट छे, अनिष्ट छे, घातक छे; तेथी विषय-कषायनी माफक क्रियारूप चारित्र निषिद्ध छे.’ आवा शुभभावोनी प्रतिज्ञा लईने कोई एम माने के बधुं थई गयुं (धर्म थई गयो) तो ते अज्ञान पोषे छे. शुभभाव पण विषय-कषायनी जेम ज अनिष्ट अने आत्मघातक छे. तेथी जेम विषय-कषायनो निषेध छे तेम पुण्यपरिणामरूप बाह्य चारित्रनो पण निषेध छे. आवुं लोकोने कठण पडे पण शुं थाय? व्यवहार चारित्रना परिणाम चैतन्यभावथी शून्य छे तेथी ते जीवद्रव्य थवा समर्थ नथी. तथा जेओ जीव थवा समर्थ नथी तेवा ए अचेतन भावो जीवनो मोक्षमार्ग केम थाय? जे बंधभाव छे तेमांथी मोक्षनो भाव केम थाय?

आ पंचम आराना साधु-परमेष्ठी-भगवान कुंदकुंदाचार्य अने अमृतचन्द्राचार्य भगवाननी दिव्यध्वनिनो संदेश पहोंचाडे छे के-ज्ञायकस्वभावमय, चैतन्यस्वभावमय एवुं जे जीवद्रव्य, चैतन्यभावथी शून्य एवुं जे पुद्गलद्रव्य तेनाथी भिन्न छे. माटे जेओ अध्यवसानादिकने जीव कहे छे तेओ खरेखर परमार्थवादी नथी. तेओ साचुं माननारा अने साचुं कहेनारा नथी. व्यवहारथी निश्चय थाय एम कहेनारा परमार्थवादी नथी. शुभ-भावरूप जे व्यवहार ए तो अजीव छे. ए अजीव मोक्षमार्गनुं साधन केवी रीते थाय? जे बंधस्वरूप छे ते मोक्षनुं साधन केम थाय?

प्रश्नः– श्रीमदे कह्युं छे ने के-‘लोपे सद्व्यवहारने साधनरहित थाय.’

उत्तरः– श्रीमदे तो त्यां जे निश्चयाभासी छे तेनी वात करी छे. जे कोई जीव निश्चयनयना अभिप्रायने यथार्थ जाणतो नथी अने सद्व्यवहार कहेतां आत्मव्यवहारने लोपे छे अर्थात् निश्चयरत्नत्रय प्रगट करतो नथी ते साधनरहित थयो थको निश्चयभासी मिथ्याद्रष्टि छे. श्रीमदे कहेली पूरी पंक्तिओ आ प्रमाणे छेः-(आत्मसिद्धिमां)

‘अथवा निश्चयनय ग्रहे, मात्र शब्दनी मांय;
लोपे सद्व्यवहारने, साधन रहित थाय.’

‘साधनरहित थाय’ एम कह्युं त्यां कयुं साधन? आ शुभभाव जे अजीव भाव छे ए साधन? ए तो साधन छे ज नहि. अंतरंग साधन निज शुद्धात्मा छे अने तेना लक्षे प्रगट थतां जे निश्चयरत्नत्रय ते बाह्य साधन छे. आ सिवाय अन्य कांई साधन नथी.

श्री प्रवचनसारमां आवे छे के-मोक्षमार्गनो भाव ए जीवनो व्यवहारभाव छे, आत्मव्यवहार छे. निश्चय समकित, निश्चयज्ञान अने निश्चयचारित्र एवी जे निश्चयरत्नत्रय-