२६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ खबर न होय तेथी कांई ते आत्म-घातना नुकशानथी बची न जाय. एने एनुं नुकशान भोगववुं ज पडे.
जुओ, दरेक ठेकाणे एम लख्युं छे के-जीव तो चैतन्यस्वभावी ज छे. आहाहा! चैतन्यस्वभावभाव, अखंड, एकरूप ध्रुवस्वभाव, एवो ने एवो रहेनारो जे त्रिकाळी ज्ञायकभाव छे ते जीव छे. एवो जीव जे रागथी-कर्मथी भिन्न छे तेने सम्यक्द्रष्टिओ प्रत्यक्ष अनुभवे छे. आवो अनुभव ज्ञान अने आनंदना वेदन सहित होय छे. प्रत्यक्ष अनुभवे छे एम कीधुं छे ने? एटले राग अने मनना संबंधथी जाणे अने अनुभवे छे एम नथी. प्रत्यक्ष अनुभवमां परनो आश्रय छे ज नहि. परना आश्रय रहित एवा मतिश्रुतज्ञानथी आत्मा प्रत्यक्ष अनुभवमां-वेदनमां आवे छे. आ बीजो बोल थयो.
त्रीजो बोलः-तीव्र-मंद अनुभवथी भेदरूप थतां, दुरंत रागरसथी भरेलां अध्यवसानोनी संतति पण जीव नथी कारण के ते संततिथी अन्य जुदो चैतन्यस्वभावरूप जीव भेदज्ञानीओ वडे स्वयं उपलभ्यमान छे अर्थात् तेओ तेने प्रत्यक्ष अनुभवे छे. जुओ, भगवाने आम कह्युं छे, युक्तिथी पण एम ज सिद्ध छे अने तीव्र-मंद रागनी परंपरा-संततिथी जुदो अन्य चैतन्यस्वभावमय जीव भेदज्ञानीओ प्रत्यक्ष अनुभवे छे.
अज्ञानीने अनादिथी तीव्र-मंद रागनी संततिनो ज अनुभव छे. तेमां जे मंद राग छे तेथी पोताने कंईक लाभ छे एम ते माने छे. पण भाई! एनाथी जराय लाभ नथी. मंद राग तो अभवीने पण थाय छे. मिथ्यात्वनी मंदता अने अनंतानुबंधी कषायनी मंदता तो अभवी जीवने पण होय छे. पण मंद राग ए कांई वस्तु (आत्मा) नथी. राग मंद हो के तीव्र, जात तो कषायनी ज छे. ए जीव नथी. जीव तो तीव्र-मंद रागनी संततिथी भिन्न नित्य एकरूप चैतन्यस्वभावमय छे. अने भेदज्ञानीओ एटले राग अने आत्मानी भिन्नताने यथार्थपणे जाणनारा धर्मात्मा जीवो आत्माने एवो ज अनुभवे छे. आ त्रीजो बोल थयो.
आठमांथी त्रण बोल चाल्या छे. हवे चोथो बोलः-नवी-पुराणी अवस्थादिकना भेदथी प्रवर्ततुं जे नोकर्म ते पण जीव नथी कारण के शरीरथी अन्य जुदो चैतन्यस्वभावरूप जीव भेदज्ञानीओ वडे स्वयं उपलभ्यमान छे अर्थात् तेओ पोते तेने प्रत्यक्ष अनुभवे छे.
नवी-पुराणी अवस्था, रोग-नीरोगनी अवस्था, बाळ-युवान-वृद्धनी अवस्था, पुष्ट- जीर्णरूप अवस्था इत्यादि अवस्थाना भेदथी नोकर्म एटले शरीर प्रवर्ते छे. अहा! भाषा तो जुओ! बाळ-युवान-वृद्धपणे के पुष्ट-जीर्णपणे के रोग-अरोगपणे आ शरीर जे पुद्गलोनो स्कंध-पिंड छे ते परिणमे छे, जीव नहि. शरीरनी अवस्थानो स्वतंत्र जन्मक्षण छे, जे-ते अवस्थारूपे शरीर स्वयं परिणमे छे. आ अनेक अवस्थाना भेदथी