Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४४ ] [ २७ प्रवर्ततुं जे शरीर ते जीव नथी. कारण के शरीरथी अन्य जुदो चिदानंदस्वभावी जीव भेदज्ञानीओ वडे प्रत्यक्ष अनुभवाय छे. शरीरने प्रवर्ताववुं ए जीवनो स्वभाव नथी.

प्रश्नः– ईर्या समितिमां जोईने चालवुं एम कह्युं छे ने?

उत्तरः– ईर्या समितिमां जीव शरीरने चालवारूप प्रवर्तावे छे एम नथी. पण ए तो जे-ते भूमिकामां शरीर जेम चाले छे तेनुं कथन कर्युं छे. अहो! शरीरथी जेमने भेदद्रष्टि थई छे एवा समकिती जीवो शरीरथी भिन्न एवा चैतन्यस्वभावमय शुद्ध आत्माने प्रत्यक्ष अनुभवे छे.

भाई! निवृत्ति लईने आनो अभ्यास करवो जोईए. श्रीमदे कह्युं छे के देहनी चिंता करतां अनंतगणी चिंता आत्मानी राखजे केमके आ एक भवमां ज अनंत भव टाळवा छे. आ भव अनंत भवने टाळवा माटे छे. अनंत भवने एक भवमां टाळवा ए कोई अलौकिक असाधारण काम छे, प्रभु! जो ए काम न कर्युं तो माथे अनंत भवो पडया छे. वंटोळियानुं तणखलुं कयां जईने पडे एनो कांई मेळ नथी. तेम मिथ्याद्रष्टि जीव देह छोडीने कयां जशे एनो कांई मेळ नथी. अरे! कयांय नरक, निगोद, तिर्यंचमां चाल्यो जशे! तथा जेनी त्रसनी स्थिति पूरी थवा आवी होय एणे जो आ कार्य (सम्यग्दर्शनादि) न कर्युं तो ते पण निगोदमां चाल्यो जशे. त्रस अवस्थानी उत्कृष्ट स्थिति बे हजार सागरथी कांईक अधिक छे. शुं कह्युं? आ इयळ, कीडी, भमरो, ढोर, नारकी, मनुष्य, देव वगेरेमां रहेवानी उत्कृष्ट स्थिति बे हजार सागर जेटली छे. ए स्थिति पूरी थये नियमथी मिथ्याद्रष्टि जीव निगोदमां-एकेन्द्रियमां जाय छे. कदाचित् पंचेन्द्रियमां रहे तो एक हजार सागर रहे अने समग्रपणे त्रसमां रहेवानो वधुमां वधु बे हजार सागर जेटलो काळ छे. आ काळमां जो सम्यग्दर्शनादि प्रगट करे तो अनंत सुखमय सिद्धपद पामे अने जो न करे तो महादुःखमय निगोद अवस्थाने प्राप्त थाय. त्यां अनंतकाळ दुःख भोगवे.

भगवान आत्मा सच्चिदानंद प्रभु एक चिन्मात्रस्वभावमय छे. ते भेदज्ञानीओ वडे देहथी भिन्नपणे स्वयं उपलभ्यमान छे. ‘स्वयं उपलभ्यमान छे.’ एनो शुं अर्थ छे? के समकितीओने पोतानी ज्ञाननी दशाथी आत्मा प्रत्यक्ष अनुभवमां आवे छे एवो तेनो अर्थ छे, मति-श्रुतज्ञानथी आत्मा प्रत्यक्ष अनुभवमां आवे छे. तेथी देह ते जीव नथी, देहथी भिन्न आत्मा चैतन्यस्वभावमय जुदी वस्तु छे. अनेक अवस्थाओना भेदरूप प्रवर्ततुं जे शरीर एमां आत्मानो अधिकार छे एम नथी. (शरीर अने आत्मा बन्ने भिन्नभिन्न छे).

श्री समयसार गाथा ९६ नी टीकामां आवे छे के आ शरीर छे ते मृतक कलेवर एटले मडदुं छे. तेमां अमृतनो सागर एवो भगवान आत्मा मूर्छाई गयो छे. शुद्ध