समयसार गाथा-४४ ] [ ३१ रागने ते अनुभवे छे पण शरीरने हुं भोगवुं छुं एम मिथ्या माने छे. तेवी ज रीते सर्पदंश थयो होय तो ते दंशने भोगवे छे एम नथी, पण ते वखते तेना लक्षे जे अणगमानो द्वेषभाव थाय छे ते द्वेषने अनुभवे छे. अहीं तो एम कहे छे के ए रागद्वेषरूप विकारीभाव अने आत्मा ए बे मळीने जीव छे एम नथी. बे भोगवे एम नहि. आत्मा विकारथी जुदो छे ए अनुभवसिद्ध छे केमके समस्तपणे कर्मथी जुदो अन्य चैतन्यस्वरूप आत्मा भेदज्ञानीओ वडे प्रत्यक्ष अनुभवमां आवे छे. भेदज्ञानीओने आनंदना वेदनवाळो आत्मा प्रत्यक्ष छे.
आठमो बोलः-अर्थक्रियामां समर्थ एवो जे कर्मनो संयोग ते पण जीव नथी. आठे कर्म भेगां थईने आत्मा थयो एम नथी. जेम खाटलाथी खाटलामां सूनारो जुदो छे तेम आठे कर्मरूपी खाटलाथी भगवान आत्मा जुदो छे. कोई दिवस विचार करे नहि, मनन करे नहि तेने आ वात केम बेसे? कळशटीकामां कळश १११मां स्वच्छंदी निश्चयाभासीनुं कथन करतां कह्युं छे के-ते जीवो शुद्ध चैतन्यनो विचार मात्र पण करता नथी.
आठ कर्मनो पाक छे एनाथी भगवान आत्मा जुदो छे. भगवान आत्मा तो ज्ञानानंदस्वरूप, चैतन्यस्वरूप छे. आठ कर्मथी आत्मा बन्यो छे ए मोटी भ्रमणा छे, केमके आठ कर्मना संयोगथी जुदो अन्य चैतन्यस्वभावमय जीव भेदज्ञानीओ वडे स्वयं उपलभ्यमान छे. अर्थात् भेदज्ञानीओ शुद्ध चैतन्यवस्तुनो प्रत्यक्षपणे आस्वाद करे छे.
आ प्रमाणे अन्य कोई बीजा प्रकारे कहे त्यां पण आ ज युक्ति जाणवी.
जीव चैतन्यस्वभावमय छे. जाणवुं-देखवुं ए तेनो स्वभाव छे. स्वभाववान पोते आत्मा अने चैतन्य पोतानो स्वभाव छे. जेटला अध्यवसानादि भावो छे तेनाथी जीव जुदो छे. रागथी आत्माने भिन्न पाडनार धर्मात्माने एवो जीव अनुभवगम्य छे. भेदज्ञानी समकिती जीव शुद्ध चैतन्यस्वभावी आत्मवस्तुने प्रत्यक्षपणे स्वसंवेदन वडे आस्वादे छे.
तेथी जेम अज्ञानी माने छे तेम नथी. कर्म, राग, शुभाशुभ भाव, पुण्य-पापना भाव के सुख-दुःखनी कल्पना इत्यादि आत्मा नथी. अहीं पुद्गलथी भिन्न आत्मानी उपलब्धि प्रत्ये विरोध करनारा पुरुषने मीठाशथी अने समभावथी ज आ प्रमाणे उपदेश करवो एम हवे काव्यमां कहे छे-
हे भव्य! ‘अपरेण अकार्य–कोलाहलेन किम्’ तने बीजो नकामो कोलाहल करवाथी शो लाभ छे? ‘हे भव्य!’ एटले के हे धर्म पामवाने लायक जीव! तने वस्तुना