३२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ स्वभावथी विरुद्ध कोलाहल करवाथी शुं लाभ छे? वस्तुनो जे चैतन्यस्वभाव तेनाथी विरुद्ध जे पुण्य-पापना अचेतन भाव तेनाथी तने शुं लाभ छे? व्यवहार साधन अने निश्चय साध्य एवो कोलाहल नकामो छे. ए तो निमित्तनुं ज्ञान कराववा एम कह्युं छे. (खरेखर व्यवहार निश्चयनुं साधन नथी).
मिथ्या विकल्पोना कोलाहलथी विरक्त थाय. व्यवहारथी निश्चय थाय, रागथी वीतरागता थाय एवा वस्तुस्वरूपथी विपरीत कोलाहलथी विराम पाम. रागथी धर्म थशे एम माननारे रागने पोतानो स्वभाव मान्यो छे. एणे रागने ज आत्मा मान्यो छे.
प्रश्नः– निर्विकल्प अनुभव थवा पहेलां छेल्ले शुभराग तो होय छे ने?
उत्तरः– भाई! ए शुभरागने छोडीने निर्विकल्प थयो छे. कांइ शुभरागथी निर्विकल्प थयो नथी. शुभभाव छे ए तो विभावस्वभाव जडस्वभाव छे, ए कांई चैतन्यस्वभाव नथी.
आत्मा एकरूप चैतन्यघनस्वभाव, ध्रुवस्वभाव, सामान्यस्वभाव, अभेदस्वभाव अखंड चैतन्यमात्र वस्तु छे. हवे कहे छे-‘निभृतः सन् स्वयम् अपि एकम् षण्मासम् पश्य’ पोते निश्चळ लीन थईने प्रत्यक्ष करीने एक चैतन्यमात्र वस्तुने देख; एवो छ महिना अभ्यास कर. चैतन्यवस्तुमां प्रमेयत्व नामनो गुण छे, तेथी तने ए ज्ञानमां प्रत्यक्ष अनुभवमां आवशे. तेथी तुं स्वरूपमां एकाग्र थईने स्वसंवेदन वडे शुद्ध चिद्रूपमात्र वस्तुनो अनुभव कर.
जुओ, अहीं अमुक क्रियाओ करे तो आत्मा देखाय एम नथी कह्युं. श्रीमद् राजचन्द्रे पण कह्युं छे केः-
भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्यसामान्यस्वरूप छे. तेने अनुभव. ‘स्वयं’ शब्द छे ने? एटले के तेना अनुभवमां परनी कोई अपेक्षा नथी. भगवान आत्मा सीधो स्वसंवेदनमां प्रत्यक्ष जणाय छे. विकल्पोनो कोलाहल अनुभवमां मददगार नथी पण अटकावनार छे, विघ्नकारी छे. नियमसारमां (गाथा र नी टीकामां) सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप शुद्धरत्नत्रयात्मक मार्ग परम निरपेक्ष कह्यो छे. वस्तुनो जे स्वभाव छे तेने वळी परनी अपेक्षा केवी?
अहीं कहे छे-‘षण्मासम्’ छ महिना चैतन्यना अनुभवनो अभ्यास कर. भाई, तुं वेपार-धंधामां वर्षोना वर्षो काढे छे. रळवा-कमावामां अने बायडी-छोकरांनी संभाळ राखवामां रात-दिवस चोवीसे य कलाक तुं पापनी मजूरीमां काढे छे. पण एनुं फळ तो मनुष्यभव हारीने ढोरनी गति प्राप्त थवानुं छे. माटे हे भाई! तुं सर्व संसारना