समयसार गाथा-४४ ] [ ३३ विकल्पोनो त्याग करी एक छ महिना शुद्धात्माना अनुभवनो अभ्यास कर. आम तो अंतर्मुहूर्तमां चैतन्यनी प्राप्ति थई शके छे. पण तने जो बहु आकरुं लागतुं होय तो छ महिना तेनो अभ्यास कर. आम छ महिना अभ्यास करवानी वात करी छे. चिदानंद प्रभु चैतन्यस्वभावी ज्ञायकस्वभावी ध्रुव एकरूप आत्मा छे तेनी लगनी लगाड, एकमात्र एमां ज धून लगाड. तने ते प्राप्त थशे ज.
श्रीमद् राजचंद्रे कह्युं छे केः-
परमानंदनो नाथ परम पदार्थ भगवान आत्मानी उपलब्धिनी भावना होय तो सत्य पुरुषार्थ एटले स्वभावसन्मुखतानो पुरुषार्थ कर. भवस्थिति हशे तेम थशे (काळलब्धि हशे तेम थशे) एवी मिथ्या अटक (पक्कड) छोडी दे. काळलब्धि हशे त्यारे थशे एवो दुराग्रह आत्माना हितने छेदनारो छे. माटे भवस्थिति आदिना बहाना छोडीने तुं पुरुषार्थ कर. भाई! तारे ‘काळलब्धि हशे त्यारे थशे’ ए वातनी धारणा-पकड करवी छे के तेनुं ज्ञान करवुं छे? तेनुं यथार्थ ज्ञान करवुं होय तो तुं ज्ञायकनी सन्मुख थई पुरुषार्थ कर. ज्ञायक ज्ञानमां आवतां तने पांचे समवायनुं वास्तविक ज्ञान थशे.
स्वभाव तरफनो पुरुषार्थ करतां सम्यकत्व थयुं त्यारे ख्याल आव्यो के काळलब्धि पाकी गई. द्रव्यसंग्रहमां (गाथा २१ नी टीकामां) आवे छे के काळलब्धि हेय छे. काळ अस्तिपणे छे, निमित्त छे पण ते हेय छे. (केमके काळनी-निमित्तनी सन्मुख द्रष्टि करतां सम्यकत्वादि थतां नथी) काळ निमित्त छे ते छे, अने पोतानी पर्यायनो जे स्वकाळ छे ते पण छे; पण ते स्वकाळनुं ज्ञान कोने थाय? पोताना स्वभावनी सन्मुख ज्यां पुरुषार्थ कर्यो त्यारे काळ पाकयो एम स्वकाळनुं-काळलब्धिनुं ज्ञान थयुं, भवितव्यतानुं पण ज्ञान थयुं, तथा स्वभावसन्मुख पुरुषार्थ कर्यो ते स्वभावनुं ज्ञान थयुं अने निमित्तनो एटलो अभाव छे एम ज्ञान थयुं. आम पांचेय समवाय कारणो एकसाथे छे एम यथार्थ ज्ञान थयुं.
तेथी अहीं कह्युं छे के छ महिना चैतन्यस्वरूप निज शुद्ध आत्मद्रव्यना अनुभवनो अभ्यास कर, एनी ज अंतरमां लगनी लगाड. अने जोके एम करवाथी ‘हृदय–सरसि पुद्गलात् भिन्नधाम्नः पुंसः ननु किं अनुपलब्धिः भाति किं च उपलब्धिः’ पोताना हृदयसरोवरमां जेनुं तेज-प्रताप-प्रकाश पुद्गलथी भिन्न छे एवा आत्मानी प्राप्ति नथी थती के थाय छे.
समयसार नाटकमां लीधुं छे के ज्ञानरूपी सरोवरमां तुं ज पोते चैतन्यकमळ छे. स्वभावसन्मुख पर्यायनो पुरुषार्थ ते भ्रमर छे. ते तुं ज छे. तुं ज ते चैतन्यकमळमां