३४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ भ्रमर थई एकत्व पाम, चैतन्यना आनंदरसनो भोक्ता था. आ चैतन्यकमळ ज्ञानानंदना रसथी अत्यंत भरेलुं छे. तेमां तुं निमग्न थई एकला ज्ञानानंदरसने पी. अहाहा! तुं निर्मळपर्यायरूप भ्रमर थईने त्रिकाळी एकरूप चैतन्यरसमां निमग्न था. तेथी तने आनंदनो अद्भुत अनिर्वचनीय आस्वाद प्राप्त थशे. शुद्ध आत्मानी प्राप्ति थशे. तु आनो अभ्यास करे अने प्राप्ति न थाय एम कदी बने ज नहि.
भगवान आत्मा पुद्गलथी भिन्न अर्थात् रागादि विकल्पथी भिन्न चैतन्यना तेजथी भरेलो, चैतन्यना नूरनुं पूर छे. तेनी सन्मुख थई अंतर्निमग्न थतां अवश्य आत्मोपलब्धि थाय छे. पुरुषार्थ करे अने प्राप्ति न थाय ए केम बने? (प्राप्ति थाय ज). जे कोई व्यवहारना विकल्पो छे तेनाथी भगवान आत्मानुं चैतन्य-तेज भिन्न छे. ते चैतन्य-तेजना अनुभव माटे विकल्पनो कोई सहारो नथी. तेथी काळलब्धि पाके त्यारे प्राप्ति थशे. भगवाने दीठुं हशे त्यारे प्राप्त थशे-इत्यादि अनेक प्रकारना विकल्पोनी नबळी वातो रहेवा दे. एवी नबळी वातोथी आत्माना पुरुषार्थने छेद मा, तारा प्रयोजनने छेद मा. स्वभावसन्मुखताना पुरुषार्थ वडे जेनुं प्रयोजन छे ते स्वात्मोपलब्धि सिद्ध कर.
वळी कोई समयसारमां उद्धृत ‘जइ जिणमयं पवज्जह......’ छंदनो आधार आपीने कहे छे के-जो जिनमार्गने प्रवर्ताववा इच्छता हो तो निश्चय अने व्यवहार एम बन्ने नयोने न छोडो. परंतु भाई, एनो अर्थ शुं? एनो अर्थ तो एम छे के-व्यवहार छे खरो, पण व्यवहार आश्रय करवा योग्य नथी. साधकपणानो भाव, १४ गुणस्थान आदि सघळो व्यवहार छे खरो, परंतु ते आश्रय करवा लायक नथी.
श्री समयसार गाथा ११मां कह्युं छे के भूतार्थनो अर्थात् एक निश्चयनो आश्रय करो. केमके त्रिकाळी भगवान जे छतो विद्यमान पदार्थ अस्तिरूप महाप्रभु छे एना आश्रये ज सम्यग्दर्शन प्राप्त थाय छे. सम्यग्दर्शन थया पछी, बाकी रहेली अशुद्धता अने पर्यायनी अपूर्णता ते ते काळे जाणेली प्रयोजनवान छे एम गाथा १२मां लीधुं छे. व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान छे, आदरेलो प्रयोजनवान नथी. ‘व्यवहारनयो......परिज्ञाय–मानस्तदात्वे प्रयोजनवान्’ एटले के व्यवहारनय ते काळे जाणेलो प्रयोजनवान छे. ते ते काळे जे प्रकारनी अशुद्धता छे अने शुद्धतानो जे अंश वध्यो छे ते सघळो व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान छे एवो अर्थ श्री अमृतचन्द्राचार्यदेवे १२मी गाथानी टीकामां कर्यो छे.
सिद्ध, साधक अने संसार ए बधुं व्यवहार छे. त्रिकाळी ध्रुव ते निश्चय अने पर्याय ते व्यवहार छे. व्यवहार छे खरो, पण जाणेलो प्रयोजनवान छे; निश्चय छे ते आदरेलो प्रयोजनवान छे. बापु! वस्तुनुं स्वरूप ज आवुं छे. भगवाने एम ज कह्युं छे, शास्त्रमां एम ज छे अने वस्तुनी स्थिति पण एम ज छे.