Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४४ ] [ ३प

अमृतचंद्राचार्यदेव कहे छे के-आ शास्त्रनी टीका करवानो जे विकल्प छे ते अमारो (स्वरूपभूत) नथी, अमे तो तेना मात्र जाणनार छीए, स्वरूपगुप्त छीए. टीका तो शब्दो वडे (पुद्गलोथी) रचाई छे. ए शब्दो अने विकल्पथी भिन्न आत्मामां अमे तो गुप्त छीए. शब्दो अने विकल्पमां अमारो निवास नथी. जुओ, आ सत्यनो ढंढेरो पीटयो छे! थोडामां घणुं कह्युं छे.

अहीं कहे छे के वस्तुस्वभाव जे पूर्ण छे तेनी सन्मुखता करी तेमां ढळतां, एकाग्र थतां तेनी प्राप्ति न थाय एम केम बने? (स्वभाव सन्मुखताना अभ्यास वडे स्वात्मोपलब्धि अवश्य थाय ज.)

* कळश ३४ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मानो अभ्यास करे तो तेनी प्राप्ति अवश्य थाय. अंतर्मुख वळवानो पुरुषार्थ करे अने प्राप्ति न थाय एम त्रण काळमां बने नहि. अहीं अभ्यासनो अर्थ मात्र वांचवुं अने सांभळवुं एम नथी, पण अभ्यास एटले निज शुद्ध चैतन्यमां एकाग्रता करवाना पुरुषार्थनी वात छे. भाई, तारी श्रद्धामां तो ले के वस्तु आवी ज छे. श्रद्धामां बीजुं लईश तो आत्मा हाथ नहि आवे, पुरुषार्थ अंतरमां नहि वळे. अहो! गजबनो कळश मूकयो छे!

तीक्ष्ण करवत के छीणी पडे अने बे कटका न थाय एम बने ज नहि. तेम जेणे रागनी रुचि छोडी अने स्वभावनी रुचि करी तेने स्वभाव प्राप्त न थाय एम बने ज नहि. जो प्राप्ति न थाय तो एनो अर्थ एटलो ज छे के स्वभाव तरफना पुरुषार्थनी खामी छे. हा, पर वस्तु होय तेनी प्राप्ति न थाय. अर्थात् जे स्वरूपमां नथी तेनी केमेय करीने प्राप्ति न थाय. गमे तेटलो पुरुषार्थ करे तोपण राग पोतानो न थई जाय. परंतु जे स्वस्वरूप छे तेनुं वलण करी तेना अनुभवनो अभ्यास करे तो तेनी प्राप्ति जरूर थाय. आत्मामां वीर्य नामनो गुण छे. तेनुं कार्य स्वरूपनी रचना करवानुं छे. तेथी अंतर्मुख थई आत्मामां पुरुषार्थ करतां स्वरूपनी रचना निर्मळ थाय, थाय अने थाय ज.

आवो उपदेश कठण पडे एटले लोको शुभ करतां करतां शुद्ध थशे एम खोटा पाटे चढी जाय छे. शुभने छोडीने अंदर (वस्तुना तळमां) जवुं ए धर्म प्राप्त करवानी निसरणी छे. प्रवचनसारमां कह्युं छे के-मोटे अवाजे अमे कहीए छीए के स्वरूप पोताथी ज प्राप्त थाय. (रागथी प्राप्त न थाय, ज्ञानथी ज थाय.)

भगवान! तुं छे के नहि? (छे). तो छे एनी प्राप्ति न थाय एम केम बने? पण भाई, ‘हुं छुं’ एम अनंतकाळमां तें कबूल्युं नथी. एक समयनी पर्याय अने