Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ रागनी स्वीकृतिमां अनंतकाळ गयो, पण अंदर वस्तु चैतन्यघन महाप्रभु जे एक समयनी पर्यायमां आवतो नथी अने जे पर्यायमां जणाया विना रहेतो नथी ए शुद्धात्मानी पूर्वे तें कदीय कबूलात करी नथी.

श्री समयसार गाथा १७-१८मां आवे छे के-आबाळ-गोपाळ सौने सदा अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा जणाई रह्यो छे. अहाहा! एनी ज्ञाननी पर्यायमां सदा त्रिकाळी वस्तु जणाय छे, केमके ज्ञाननी पर्यायनो स्वपरप्रकाशकस्वभाव छे. स्व एवुं जे द्रव्य ते ज तेना ज्ञानमां आवे छे. परंतु अज्ञानीनुं वलण स्वद्रव्य उपर नथी तेथी ज्ञाननी पर्यायमां- प्रगट अवस्थामां जाणनारो पोते जणाय छे एवुं तेने भान थतुं नथी, एवी तेने प्रतीति उपजती नथी. भगवान! तारुं जे पूर्ण अस्तित्व छे ते एक समयनी पर्यायमां सदाय जणाय छे. भाई! आ तो सर्वज्ञनी वाणी छे, आ तो परमागम छे. आवी वाणी बीजे कयांय छे ज नहि. जेनो एक एक न्याय अंदर सोंसरवो उतरी जाय एवी आ वाणी छे.

पर्यायबुद्धिमां, रागबुद्धिमां अज्ञानी अटकयो छे. त्यां अटकयो छे तेथी जाणनारो पोते त्रिकाळी आत्मा एने जणाय छे एम ख्यालमां आवतुं नथी. अरे! आवा तत्त्वनो निर्णय करवानो लोकोने समय ज कयां छे? एक दिवसमां त्रेवीस कलाक तो बस रळवुं, कमावुं अने बायडी-छोकरां साचववां, राजी राखवां अने उंघवुं-एम जाय. कदाच एकाद कलाक मळे तो कुगुरु वडे ते लूंटाई जाय छे. अहा! ए वेशधारीओ ते बिचाराने मिथ्या शास्त्रो द्वारा युक्ति- प्रयुक्ति बतावी लूंटी ले छे.

श्री मोक्षमार्ग प्रकाशकमां १पमां पाना उपर लख्युं छे के-जे शास्त्रोमां वीतरागभावनुं प्रयोजन प्रगट कर्युं होय ते ज शास्त्रो वांचवा-सांभळवा योग्य छे. रागनी मंदताथी संसार घटे एम जेमां कह्युं होय ते शास्त्र नथी, केमके एणे तो अतत्त्वश्रद्धान पोषी मोहभावने प्रगट कर्यो छे. आवुं शास्त्र ते शास्त्र नथी पण शस्त्र छे, कारण के राग-द्वेष-मोह वडे जीव अनादिथी दुःखी थई रह्यो छे. शुभरागनी वासना तो तेने वगर शिखवाडे पण हती अने आ शास्त्र वडे तेनुं ज पोषण कर्युं त्यां भलु थवानी शुं शिक्षा आपी? आवी वात आकरी लागे पण शुं थाय? पोताना वाडानो आग्रह होय तेथी दुःख थाय पण तेथी शुं? (जेणे हित करवुं होय तेणे मध्यस्थ थई विचारवुं जोईए).

श्री पंचास्तिकाय गाथा १७२मां पण कह्युं छे के सर्व शास्त्रोनुं तात्पर्य वीतरागता छे. जुओ, दिगंबरोना बधांय शास्त्रोनी वात मेळ खाती अने अविरुद्ध छे. सर्व शास्त्रोमां वीतरागतानुं ज पोषण कर्युं छे. सवारमां आव्युं हतुं ने के अरिहंतोए मोक्ष अने मोक्षमार्गनी प्ररूपणा करी छे. एवा अरिहंतोने एमनी सर्वज्ञता अने