Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४४ ] [ ३७ वीतरागताने ओळखीने नमस्कार करुं छुं. जुओ, आ निर्ग्रंथ संतोनी अमृत वाणी! आनुं नाम परमागम अने शास्त्र छे.

अहीं कहे छे के-पोताना स्वरूपनो अभ्यास करे तो तेनी प्राप्ति जरूर थाय. अहीं रागनो अभ्यास करवानुं नथी कह्युं. रागादि पर वस्तु गमे ते पुरुषार्थथी पण प्राप्त न थाय. पर वस्तु छे ने? पोतानुं स्वरूप तो मोजूद छे. अहाहा! विज्ञानघन-स्वभावपणे अस्ति धरावती पोतानी चीज प्रत्यक्ष मोजूद छे. पण तेने पोते भूली गयो छे. चेतीने एटले जाणीने जो देखे तो पासे ज छे, केमके ते पोते ज छे. जुओ तो खरा, श्री जयचंद पंडिते केवो सरस भावार्थ भर्यो छे! कहे छे के अंतरमां जाग्रत थईने जुए तो ते पोते ज छे. तेनो अभ्यास करतां ते प्राप्त थाय ज.

अहीं छ महिनानो अभ्यास कह्यो तेथी एम न समजवुं के एटलो ज वखत लागे. स्वरूपनी प्राप्ति तो अंतर्मुहूर्तमात्रमां थाय छे. परंतु शिष्यने बहु कठण लागतुं होय तो तेनो निषेध कर्यो छे. समजवामां छ महिनाथी अधिक समय नहि लागे. तेथी अन्य निष्प्रयोजन कोलाहल छोडी ज्ञानानंदस्वरूप भगवान आत्मामां लागवाथी जलदी स्वरूपनी प्राप्ति थशे एवो उपदेश छे.

[प्रवचन नं. ८९ थी ९१ * दिनांक ८-६-७६ थी १०-६-७६]