Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४प ] [ ३९

* श्री समयसार गाथा ४पः मथाळुं *

हवे शिष्य पूछे छे के आ अध्यवसानादि भावो जीव न कह्या, अन्य चैतन्यस्वरूप जीव कह्यो; तो आ भावो पण चैतन्य साथे संबंध राखनारा प्रतिभासे छे. राग-द्वेष आदि भावो जड साथे संबंध राखता नथी, आत्मा साथे संबंध राखे छे. चैतन्य सिवाय जडमां, शरीरादिमां तो राग देखातो नथी. छतां तेमने पुद्गलना स्वभाव केम कह्या? प्रश्ननुं रूप समजायुं? कहे छे के-आ राग-द्वेष, पुण्य-पापना भाव अने सुख-दुःखनुं भोगववुं ए तो चैतन्यनी पर्यायमां थाय छे, कांई शरीरादि जडमां थता नथी. ए चैतन्यनी ऊंधाईथी थाय छे. तेथी ते चैतन्य साथे संबंध राखनारा प्रतिभासे छे. छतां तेमने पुद्गलना स्वभाव केम कह्या? आवी जेने अंतरथी समजवानी जिज्ञासा छे अने प्रश्न पूछे छे तेने उत्तररूपे गाथा सूत्र कहे छेः-

* श्री समयसार गाथा ४पः टीका उपरनुं प्रवचन *

अध्यवसान आदि समस्त भावोने उत्पन्न करनारुं जे आठे प्रकारनुं ज्ञानावरणादि कर्म छे ते बधुंय पुद्गलमय छे एवुं सर्वज्ञनुं वचन छे. शुं कह्युं? आ अध्यवसानादि भावो एटले पुण्य-पापना भावो, दया, दान, व्रत, तप, भक्ति आदि शुभभावो अने काम, क्रोधादि अशुभभावोने उत्पन्न करनारुं कर्म छे. व्यवहार रत्नत्रयनो जे भाव छे ते शुभराग छे. ए शुभराग पोतानो माने ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे. तो ए शुभरागथी लाभ (धर्म) थाय ए वात ज कयां रही? अहीं कहे छे के जे शुभभाव छे ते निमित्तरूप कर्मना लक्षे थाय छे अने ए कर्म पुद्गलमय छे एम सर्वज्ञनुं वचन छे. गाथामां पाठ छे ने के ‘जिणा बेंति’ भगवान सर्वज्ञदेवनुं आ वचन छे के व्रत-अव्रतना शुभाशुभ भावो, हरख-शोकना भावो वगेरे सघळा भावोने उत्पन्न करनारुं कर्म छे अने ते कर्म पुद्गलमय जड छे. ते भावोने उत्पन्न करे एवो जीवनो द्रव्यस्वभाव नथी. जुओ, केवी सरस वात लीधी छे! भाई! परनी दया तो तुं पाळी शक्तो नथी, पण परनी दया पाळवानी (छ कायना जीवोनी रक्षा करवानी) जे वृत्ति ऊठे एने उत्पन्न करनारुं कर्म छे अने ते पुद्गलमय छे; ते आत्मस्वभावमय नथी, चैतन्यस्वभावमय नथी. अहाहा! बहु सूक्ष्म वात. वीतराग जैनदर्शन बहु सूक्ष्म छे. लोकोने समजमां न आवे तेथी विरोध करे, पण शुं थाय?

हवे कहे छे के विपाकनी हदे पहोंचेला ते कर्मना फळपणे जे कहेवामां आवे छे ते दुःख छे. कर्मनो विपाक थतां, जे पुण्यपापना भावो थाय छे ते कर्मना फळपणे अनुभवाय छे अने ते दुःख छे. अरे! लोकोने निश्चयमार्ग (सत्यमार्ग) छे ते बेसतो नथी अने व्यवहार परंपरा कारण छे एम हठ पकडीने बेसी गया छे. पण भाई, व्यवहारनो जे शुभराग छे तेने उत्पन्न करनार तो कर्म-पुद्गल छे एवुं सर्वज्ञनुं वचन