४० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ छे. एने परंपरा कारण शी रीते कहीए? विपाकने प्राप्त कर्मना फळपणे कहेवामां आवेला ते अध्यवसानादि भावो दुःखरूप छे. ते परंपरा मोक्षनुं (सुखनुं) कारण केम होय?
भगवान आत्मा त्रिकाळ अनाकुळ आनंदस्वभावथी वस्तु छे. अनाकुळ सुख आत्मानो स्वभाव छे. एवो जे सुख नामनो अतीन्द्रिय अनाकुळ आत्मस्वभाव छे तेनाथी पुण्य-पापना भाव विलक्षण छे, विरुद्ध लक्षणवाळा छे. सवारे कह्युं हतुं ने के सक्करकंद जेम साकरनी मीठाशनो पिंड छे तेम भगवान आत्मा ज्ञानथी जोईए तो ज्ञानमय छे अने सुखथी जोईए तो सुखमय छे. आत्मा शुद्ध चैतन्यमात्र वस्तु छे. तेमां अनाकुळ अतीन्द्रिय आनंद वसेलो छे. तेमां कांई पुण्य-पापना विकल्प वसेला नथी. ए पुण्य-पापना विकल्प, चाहे व्यवहार रत्नत्रयना विकल्प हो, चैतन्यथी विलक्षण एटले विरुद्ध लक्षणवाळा, आकुळता-लक्षणवाळा छे.
हवे कहे छे के ए आकुळतालक्षण अध्यवसान आदि भावो, पुण्य-पापना भावो दुःखमां ज समावेश पामे छे. आत्मा तो ज्ञानमय, श्रद्धामय, शान्तिमय, वीतरागतामय, अतीन्द्रिय आनंदमय छे. आत्मानो जे अनाकुळ आनंदमय स्वभाव छे तेनाथी विलक्षण पुण्य-पाप दुःखरूप छे. जे भाव दुःखरूप छे ते सुखनुं साधन केम थाय? ते साधन नथी पण (बाधक होवा छतां) साधन कहेवामां आवे छे. जेम मोक्षमार्ग बे प्रकारे नथी, मोक्षमार्गनुं निरूपण बे प्रकारे छे तेम साधन बे प्रकारे नथी पण एनुं निरूपण बे प्रकारे छे. निश्चय समक्ति थाय त्यारे साथे जे देव-गुरु-शास्त्रनी श्रद्धानो राग होय तेने व्यवहार समक्ति कहे छे. खरेखर राग छे ते तो चारित्रनो दोष छे. देव-गुरु-शास्त्रनी, छ द्रव्यनी के नवतत्त्वनी जे श्रद्धा छे ए तो विकल्प छे, राग छे. परंतु निश्चय सम्यग्दर्शननो सहचर देखीने तेने समक्तिनो आरोप आप्यो छे. शुभभाव निश्चयथी तो झेर छे, पण निश्चय समक्तिनो सहचर जाणी तेने अमृतनो आरोप आप्यो छे. अहीं कहे छे के रागादि भावो सधळा आकुळतालक्षण दुःखमां ज समावेश पामे छे. तेथी खरेखर ते अजीव छे. जीव वस्तु तो ज्ञानानंदस्वभावी छे अने आ पुण्य-पाप आदि भावो एनाथी विलक्षण एटले विपरीत स्वभाववाळा दुःखस्वरूप छे, झेररूप छे. आगळ जतां तेने विषकुंभ कह्यो छे.
प्रश्नः– श्रीमद्मां आवे छे ने के-
उत्तरः– साधन एटले? आ रागनी मंदता ए साधन? रागनी मंदता साधन छे ज नहि. ए रागादिनां साधन तो आकुळतालक्षण दुःखमां समावेश पामे छे एम अहीं कह्युं छे. श्रीमदे तो निश्चयना लक्षे साधननी वात कही छे. निश्चय साधन करवानी वात कही छे.