Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४प ] [ ४१

भाई! भगवान त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेव एम कहे छे के मारी सामे जोतां तने राग थशे. ए राग छे ते दुःखमां समावेश पामे छे. भगवान आत्मा सच्चिदानंद प्रभु अनाकुळ आनंदस्वरूप छे. तेनी अपेक्षाए स्त्री आदि विषय तरफ लक्ष जाय, के भगवाननी वाणी उपर लक्ष जाय, ए बन्ने सरखां छे. स्त्री आदिना लक्षे अशुभ भाव थाय अने भगवाननी वाणीना लक्षे शुभभाव थाय. ए बन्नेनेय (समयसार गाथा ३१मां) इन्द्रिय कह्या छे. अने इन्द्रियोने जीतवानुं कह्युं छे. अर्थात् एमांथी खसी जवानुं कह्युं छे. एटले भगवानना आश्रये रहेवुं एम कह्युं नथी. भगवानना आश्रये तो शुभराग थशे अने ते शुभराग दुःखरूप ज छे. अहो! आवी हितनी वात दिगंबर जैनदर्शन सिवाय अन्यत्र कयांय नथी.

भगवान! तारो स्वभाव तो अनाकुळ आनंद छे ने! ते छोडीने तने जे रागनो विकल्प ऊठे, देव-गुरु-शास्त्रनी श्रद्धानो जे विकल्प ऊठे ते आकुळतालक्षण दुःखरूप छे. पद्मनंदी स्वामीए पद्मनंदी पंचविंशतिमां चिदानंद चैतन्यस्वरूपमांथी बहार नीकळी जे बुद्धि शास्त्र भणवामां अटकी छे तेने व्यभिचारिणी बुद्धि कही छे. अहा! गजब वात छे! भाई! वस्तुनुं स्वरूप जेम छे तेम समजवुं पडशे.

श्री कुंदकुंदाचार्यदेव भगवान पासे आठ दिवस रह्या हता. भरतक्षेत्रमांथी ज्यां सीमंधर परमात्मा बिराजे छे त्यां विदेहक्षेत्रमां गया हता. ते भगवाननी आ वाणी छे. आ गाथामां ते पोते कहे छे के आ सर्वज्ञनुं वचन छे के शुभभावो पुद्गलथी उत्पन्न थयेला भावो छे, जीवद्रव्यथी उत्पन्न थयेला नथी. पुद्गलना निमित्ते उत्पन्न थयेला छे माटे ते पुद्गलमय ज छे. भगवान आत्मा अनाकुळ आनंदस्वरूप छे अने पुण्य छे ए तेनाथी विपरीत लक्षणवाळो भाव दुःखरूप छे; अनाकुळ आनंदस्वभावी आत्मामां एनो समावेश थतो नथी. पर्यायमां जे शुभराग छे, पुण्यभाव छे ते दुःख छे, तेथी निश्चयनयथी तेने आत्मस्वभाव साथे संबंध नथी. तथा स्वभावनो जे पर्यायमां अनुभव थाय ते निर्मळ निर्विकारी पर्याय साथे पण ते शुभरागनो संबंध नथी.

चिन्मात्र वस्तुनो जे अनाकुळ आनंद स्वभाव ते जेणे साध्यो छे तथा तेमां ज द्रष्टि, ज्ञान अने रमणता थतां जेने निराकुळ आनंदनो प्रगट स्वाद आव्यो छे तेवा धर्मी जीवना मंदरागना भावने (सहचर देखी) परंपरा कारण कह्युं छे. तेणे स्वभाव तरफनुं जोर करीने शुभना काळे अशुभभाव टाळ्‌यो छे. खरेखर तो स्वभावना जोरना कारणे अशुभ टळ्‌यो छे, पण तेने बदले शुभभावथी अशुभ टळ्‌यो एम आरोप करीने कह्युं छे. मिथ्याद्रष्टिने स्वभाव तरफनुं जोर ज नथी. तेथी तेने अशुभ टळ्‌यो ज नथी. तेथी तेने शुभभाव जे थाय छे ते शुभभाव उपर परंपरा कारणनो आरोप आपी शकातो नथी.