४२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ सौथी मोटुं मिथ्यात्वनुं पाप छे. तेनो तेणे नाश कर्यो नथी. तेथी मिथ्याद्रष्टिना बधांय भावोने अशुभ कह्या छे.
हवे कहे छे ए रागादि भावो चैतन्य साथे संबंध होवानो भ्रम उपजावे छे तोपण, तेओ आत्माना स्वभावो नथी पण पुद्गलस्वभावो छे. जुओ, एककोर राम अने एककोर गाम. ‘निजपद रमे सो राम’. चिदानंद भगवान निजपद छे. तेमां रमतां रमतां जे आनंद आव्यो तेनो राग साथे संबंध छे ज नहि. (राम अने राग भिन्न छे). अज्ञानीने अनाकुळ आनंदमूर्ति आत्मा अने राग एकमेक छे एवो भ्रम उपजे छे, पण रागादि भावो चैतन्यना स्वभावमां छे ज नहि.
साधकने ज्ञानधारा अने रागधारा बन्ने साथे वर्ते छे. परंतु जे रागधारा छे ते पुद्गलना संबंधे उत्पन्न थयेली छे, स्वभावना संबंधे उत्पन्न थयेली नथी. अहीं एम कहेवुं छे के साधकने व्यवहाररत्नत्रयनो जे विकल्प छे ते दुःखमां समावेश पामे छे अने तेथी ते आत्मानो स्वभाव नथी. भाई, अनंत महिमावंत तारी चीज छे तेनी तने मोटप केम आवती नथी? रागथी लाभ थाय एम रागनी मोटप आवे छे पण ए तो भ्रम छे, मिथ्यात्व छे.
चैतन्य चिदानंद प्रभु तारो नाथ छे. नाथ एटले शुं? नाथ एटले निज चैतन्य- स्वभावनो आश्रय करतां जे शान्ति अने आनंदनी निर्मळ दशा प्रगटी तेनी रक्षा करनारो छे, तथा वर्तमानमां परिपूर्ण शान्ति अने परिपूर्ण आनंदनी दशा जे नथी प्रगटी तेने मेळवी आपनारो छे. तेथी आत्माने नाथ कहीए छीए. मळेलानी रक्षा करे अने नहि मळेलाने मेळवी आपे तेने नाथ कहेवाय छे. प्रगट शांति अने वीतरागतानी रक्षा करतां करतां क्रमशः पूर्ण वीतरागता अने केवळज्ञान मेळवी आपे एवो भगवान आत्मा नाथ छे. परंतु रागने राखे अने रागने मेळवी आपे एवुं आत्मानुं स्वरूप नथी.
सत्यने सत्यरूपे राखजे, भाई. श्रीमदे कह्युं छे के वस्तुने वस्तु तरीके राखजे, फेरफार करीश नहि. भगवान आत्मा ज्ञानानंदस्वभावी निराकुळ सुखस्वरूप छे. तेने तेमां राखजे. रागमां आत्मा आवी गयो एम न मानीश.
श्री बनारसीदासजीए आ पद समयसार नाटकमां लख्युं छे. शुद्ध आनंदघन प्रभु चैतन्यस्वरूप आत्मा अंदर बिराजे छे. तेनो आश्रय करतां सम्यग्दर्शन थाय एवो सहज स्वभाव छे. परंतु परना आश्रये त्रिकाळमां (त्रण काळमां) सम्यग्दर्शन न थाय.
समयसार, बंध अधिकारमां आवे छे के-परने जीवाडुं, मारुं, सुखी-दुःखी करुं, परना प्राणोनी रक्षा करुं, तेमने हणुं, परने सुखनां साधन आपुं, दुःखनां साधन आपुं इत्यादि जे अध्यवसाय छे ते अज्ञान छे, मिथ्यात्व छे. एवी मान्यतानो भगवाने निषेध